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मंगलवार, 9 अगस्त 2011

Hori: प्रेम ग्रन्थ का आदि से, किया अंत तक पाठ   |'होरी' ...

   माना कि तुम हो ,औ तुम्हारी है ग़लतफ़हमी हजूर ,
  'होरी'   ऐसे  ही  यहाँ  पर  आये,  कितने  ही   गए |
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यदि नहीं तुमने उठाया  स्वयं   और  समाज  को ,
  'होरी तुम्हारी आत्मा  जिंदा  कहाँ    रह    पायगी |
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जय करो बेशक  करो , पर होश   भी तो  चाहिए ,
 'होरी' ऐसा   हो कहीं  हम    और नीचे   गिर गए|
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               राज कुमार  सचान 'होरी

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