---------- Forwarded message ----------
From: <919984708227@mms1.live.vodafone.in>
Date: 2011/7/31
Subject:
To: horisardarpatel@gmail.com
क्रमशः--
।11।
बहुत हुए अब राग मल्हार ,
सावन की अब गयी बहार ।
बीर रस की पड़े
फुहार ,
फाल्गुन मेँ ही अबकी
बार ।
।12।
अनमोल रत्न् थे राष्ट्र
हार के ,
पछताते हैँ हर बार ।
महासंघ इक अवसर
धागे सा ,
गुँथ जायेँ अबकी बार।
।13।
एक ही बस, आह्वाहन
करता ,
बस कर लो पुनः विचार
सत्ता ही वह चाबी है ,
जो खोल सके हर द्वार ।
।14।
फिर से क्षत्रिय बन ही जाओ
सरदार,शिवा को अपनाकर ।
अपना ही परचम् लहराओ ,
कल की बीती बात
भुलाकर ।
~सत्येन्द्र पटेल (फते0)
From: <919984708227@mms1.live.vodafone.in>
Date: 2011/7/31
Subject:
To: horisardarpatel@gmail.com
क्रमशः--
।11।
बहुत हुए अब राग मल्हार ,
सावन की अब गयी बहार ।
बीर रस की पड़े
फुहार ,
फाल्गुन मेँ ही अबकी
बार ।
।12।
अनमोल रत्न् थे राष्ट्र
हार के ,
पछताते हैँ हर बार ।
महासंघ इक अवसर
धागे सा ,
गुँथ जायेँ अबकी बार।
।13।
एक ही बस, आह्वाहन
करता ,
बस कर लो पुनः विचार
सत्ता ही वह चाबी है ,
जो खोल सके हर द्वार ।
।14।
फिर से क्षत्रिय बन ही जाओ
सरदार,शिवा को अपनाकर ।
अपना ही परचम् लहराओ ,
कल की बीती बात
भुलाकर ।
~सत्येन्द्र पटेल (फते0)
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