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शनिवार, 6 अगस्त 2011

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Date: 2011/7/31
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क्रमशः--
।11।
बहुत हुए अब राग मल्हार ,
सावन की अब गयी बहार  ।
बीर रस की पड़े
फुहार ,
फाल्गुन मेँ ही अबकी
 बार ।
।12।
अनमोल रत्न् थे राष्ट्र
 हार  के ,
पछताते हैँ हर बार ।
महासंघ इक अवसर
 धागे सा ,
 गुँथ जायेँ अबकी बार।
।13।
 एक ही बस, आह्वाहन
 करता ,
 बस कर लो पुनः विचार
 सत्ता ही वह चाबी है ,
जो खोल सके हर द्वार ।
।14।
फिर से क्षत्रिय बन ही      जाओ
 सरदार,शिवा को   अपनाकर ।
अपना ही परचम् लहराओ ,
कल की बीती बात
भुलाकर ।
~सत्येन्द्र पटेल (फते0)

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