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शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

बेटी बचाओ अभियान की गूंज पाकिस्तान तक जा पहुंची

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटी बचाओ अभियान की गूंज पड़ोसी देश पाकिस्तान तक भी जा पहुंची है.पाकिस्तान के जाने.माने मीडिया समूह डान से जुड़ी पत्रकार सोफिया जमाल ने श्री चौहान द्वारा की गयी पहल " बेटी बचाओ अभियान " को बेहद सकारात्मक पहल बताया है. उन्होंने कहा कि यह कदम तारीफ के काबिल है क्योंकि बेटियां कुदरत की अनमोल नेमत हैं. सोफिया कहती हैं कि खासकर भारत और पाकिस्तान में यह सामाजिक परंपरा रही है कि बेटों को बेटियों से ज्यादा तरजीह दी जाती है. जबकि हकीकत यह है कि बेटियां किसी मायने में बेटों से कम नहीं बल्कि उनसे आगे ही हैं. वे बच्चों को जन्म देने के साथ नौकरी करती हैं और घर के लिए पैसा भी कमाती हैं. उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार के " बेटी बचाओ अभियान " की मैं तहेदिल से तारीफ करती हूं!महिलाओं के हित में न सिर्फ इस तरह के अभियान जरूरी हैं बल्कि उनकी सुरक्षा के लिए कानूनों में भी रद्दोबदल की जरूरत है.
      यह कहना गलत न होगा की आज समाज में एक जघन्य अपराध भ्रूण हत्या भी है. इस अपराध के पीछे इच्छित संतान की मानशिकता है. इसे अंजाम देने के लिए वैज्ञानिक आविष्कार सहयोगी बने हैं. परिणामस्वरूप गर्भस्थ शिशु का लिंग परीक्षण कराना और अनचाही संतान से छुटकारा पाना सहज हो गया है. विश्व में भूण हत्याओं का क्रूर व्यापार निर्बाध गति से बढ़ रहा है.

 

भगवान महावीर, बुद्ध एवं गांधी जैसे प्रेरकों के इस अहिंसा प्रधान देश में हिंसा का नया रूप भारतीय संस्कृति का उपहास है. भारत में करीब ढाई दशक पूर्व भ्रूण परीक्षण पद्धति की शुरुआत हुई, जिसे एमिनो सिंथेसिस नाम दिया गया. एमिनो सिंथेसिस का उद्देश्य है, गर्भस्थ शिशु के क्रोमोसोम्स के संबंध में जानकारी हासिल करना. यदि उनमें किसी भी तरह की विकृति हो, जिससे शिशु की मानसिक-शारीरिक स्थिति बिगड़ सकती हो तो उसका उपचार करना. लेकिन पिछले करीब दस-पंद्रह वर्षों से एमिनो सिंथेसिस राह भटक गया है. आज अधिकांश माता-पिता गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की चिंता छोड़कर भ्रूण परीक्षण केंद्रों में यह पता लगाते हैं कि वह लड़का है अथवा लड़की.यह कटु सत्य है कि लड़का होने पर उस भ्रूण के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होती, किंतु लड़की की इच्छा न होने पर उस भ्रूण से छुटकारा पाने की प्रक्रिया अपनाई जाती है. अब सवाल यह उठता है कि देवी स्वरूप, निस्वार्थ भाव से सुख-सुविधाओं का बलिदान करने वाली मां उस अजन्मे शिशु को मारने की स्वीकृति कैसे दे देती है? क्या उस बच्ची को जीने का अधिकार नहीं है? उस बेचारी ने कौन सा अपराध किया है? यह कृत्य मानवीय दृष्टि से भी उचित नहीं है. प्रत्येक प्राणी जीना चाहता है. किसी को जीने के अधिकार से वंचित करना पाप है. वैदिक धर्म में भ्रूण हत्या को ब्रह्म हत्या से भी बड़ा पाप बताया गया है. कहा गया है कि ब्रह्म हत्या से जो पाप लगता है, उससे दोगुना पाप गर्भपात से लगता है. इसका कोई प्रायश्चित नहीं है. जैन दर्शन में भी इसे नरक की गति पाने का कारण माना गया है. आश्चर्य है कि धार्मिक कहलाने वाला और चींटी की हत्या से भी कांपने वाला समाज आंख मूंद कर कैसे भ्रूण हत्या कराता है! यह मानव जाति को कलंकित करने वाला अपराध है.
देश का एक जिला ऐसा भी है, जहां के युवा वर्ग ने बेसहारा सेवा संस्थान के जरिये एक खास अभियान चला रखा है. कानपुर देहात के रसूलाबाद क्षेत्र के दर्जनों युवक युवतियां ने अपने गांव व आसपास होने वाली किसी भी धर्म-जाति की कन्या की शादी में टेंट से लेकर बर्तन तक का काम खुद संभालतें है.बल्कि खुद अपने संसाधनों से शादी- विवाह में काम आने वाले तमाम छोटे-बड़े साजोसामान लड़की के घर वालों को आर्थिक मदद भी करते हैं. बेसहारा सेवा संस्थान से लाभांवित होने के बाद लोगों की भावनाएं बदली हैं. यूं तो बेटी का विवाह एक सामाजिक परंपरा है, लेकिन अगर ऐसे ही बेटी वालों की मदद की जाने लगे तो कन्या भ्रूण हत्या जैसी विकृत सोच रखने वाले लोगों के भी विचार बदलेंगे. बहरहाल, यह समझ में नहीं आता कि आज हम इंसान बनना क्यों भूलते जा रहे हैं. जो लोग भ्रूण हत्या के बारे में सोचते हैं, उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि बेटियों से घर-आंगन में रौनक है. ममता, प्रेम, त्याग, रक्षाबंधन और न जाने कितनी परंपराएं उन्हीं बेटियों के चलते जीवित हैं. इस स्थिति को देखकर कह सकते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या पाप ही नहीं, देश और समाज के लिए अभिशाप भी है. इसे कड़ाई के साथ रोकने की जरूरत है.
पिछले सालों अमेरिका में एक सम्मेलन हुआ, जिसमें डॉ. निथनसन ने एक अल्ट्रासाउंड फिल्म (साइलेंट स्क्रीन) दिखाई. उसमें बताया गया कि 10-12 सप्ताह की कन्या की धड़कन जब 120 की गति में चलती है, तब बड़ी चुस्त होती है, लेकिन जैसे ही पहला औजार गर्भाशय की दीवार को छूता है तो बच्ची डर से कांपने लगती है और अपने आप में सिकुड़ने लगती है. औजार के स्पर्श करने से पहले ही उसे पता लग जाता है कि हमला होने वाला है. वह अपने बचाव के लिए प्रयत्न करती है. औजार का पहला हमला कमर और पैर पर होता है. गाजर-मूली की भांति उसे काट दिया जाता है. कन्या तड़पने लगती है. फिर जब उसकी खोपड़ी को तोड़ा जाता है तो एक मूक चीख के साथ उसका प्राणांत हो जाता है. यह दृश्य हृदय को दहला देता है. इस निर्मम कृत्य से ऐसा लगता है, मानों कलियुग की क्रूर हवा से मां के दिल में करुणा का दरिया सूख गया है. तभी तो दिन-प्रतिदिन कन्या भ्रूण हत्याओं की संख्या बढ़ रही है. यह भ्रूण हत्या का सिलसिला इसी रूप में चलता रहा तो भारतीय जनगणना में कन्याओं की घटती संख्या से भारी असंतुलन पैदा हो जाएगा. यदि बदलाव नहीं आया तो आने वाले कुछ वर्षों में ऐसी स्थिति आ जाएगी कि विवाह योग्य लड़कों के लिए लड़कियां नहीं मिलेंगी.
हिंदुस्तान की आबादी बढ़ कर 121 करोड़ हो गई है। दस साल पहले हुई गणना के मुकाबले यह 17.64 फीसदी ज्यादा है। संतोष की बात यह है कि आबादी बढ़ने की हमारी रफ्तार कम हुई है और आजादी के बाद यह सबसे निचले स्तर पर है। पिछली जनगणना के मुकाबले जनसंख्या दर करीब चार फीसदी कम दर्ज की गई है। इसी तरह महिलाओं की तत्परता के कारण अब हमारी कुल 74 फीसदी आबादी साक्षर हो चुकी है। लेकिन चिंता की बात है कि इस दौरान गर्भ में बच्चियों की हत्या के मामले में हमने सारे रिकार्ड तोड़ दिए। छह साल तक की आबादी में इस समय एक हजार लड़कों के मुकाबले सिर्फ 914 लड़कियां ही हैं।
जनगणना 2011 प्रोविजनल, के मुताबिक पिछले दस साल के दौरान हमने दुनिया के पांचवें सबसे ज्यादा आबादी वाले देश ब्राजील जितनी आबादी पैदा कर दी। आजादी के बाद से यह सबसे कम वृद्धि दर वाला दशक साबित हुआ है। कुल संख्या के हिसाब से देखें तो 2001 से 2011 के दौरान जितनी आबादी बढ़ी वह उससे एक दशक पहले हुई बढ़ोतरी से कम ही है। उत्तर प्रदेश 20 करोड़ आबादी के साथ अब भी पहले स्थान पर बना हुआ है। इस अकेले राज्य की आबादी ब्राजील से ज्यादा है। 11.23 करोड़ के साथ महाराष्ट्र दूसरे और 10.38 करोड़ के साथ बिहार तीसरे नंबर पर है। सबसे कम आबादी लक्ष्यद्वीप की है। यहां कुल 64,429 लोग हैं। ताजा जनगणना के मुताबिक प्रति हजार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का औसत पहले के 933 के मुकाबले बढ़ कर 940 हो गया है। सिर्फ बिहार, गुजरात और जम्मू-कश्मीर ही ऐसे तीन राज्य रहे, जिनमें महिलाओं का औसत कम हुआ है। ताजा आंकड़े साबित करते हैं कि लड़कियों को गर्भ में ही या पैदा होते ही मार देने की घटनाएं बढ़ी हैं। छह साल तक की आबादी में बच्चियों का औसत पिछली जनगणना के 927 से भी घट कर 914 हो गया है। छह साल तक की आबादी में लड़कियों के औसत के मामले में हरियाणा और पंजाब 830 और 846 के औसत के साथ सबसे निचले पायदान पर हैं।
जनगणना के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में सात साल से ऊपर की आबादी में 74 फीसदी लोग अब साक्षर हो चुके हैं। 2001 में हुई जनगणना के दौरान देश भर में सिर्फ 64.83 फीसदी लोग ही साक्षर पाए गए थे। साक्षरता के मामले में बिहार और अरुणाचल प्रदेश 63.82 और 66.95 फीसदी साक्षरता के साथ सबसे निचले पायदान पर हैं। जबकि 93.91 फीसदी के साथ केरल अव्वल है। तेजी से साक्षर बनने के मामले में महिलाओं ने पुरुषों से बाजी मारी है। जहां पुरुषों में साक्षरता दर 6.88 फीसदी ही बढ़ी, वहीं महिलाओं में यह 11.79 फीसदी की दर से बढ़ी। मौजूदा हालात को देखते हुए आवश्यकता इस बात की है कि सामाजिक सोच बदली जाए, मानदंड बदले जाएं, लड़कों और लड़कियों के बीच भेदभाव समाप्त किया जाए. आज की परिस्थिति में लड़का हो या लड़की, उसके अंदर शिक्षा एवं संस्कार भरने की जरूरत है. लड़कियों के जन्म से घबराने की अपेक्षा उनके जीवन के निर्माण की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए. यही समाज के लिए श्रेयस्कर होगा. संस्कारी और सुयोग्य कन्याओं से परिवार भी सुरभित बनेगा, जो समाज एवं राष्ट्र के लिए उपयोगी सिद्ध होगा. हालांकि कुछ राज्यों में सरकार द्वारा कन्या भ्रूण हत्या पर प्रतिबंध लगाया गया है. इस प्रतिबंध का कोई असर तब तक नहीं होगा, जब तक मनुष्य की मनोवृत्ति नहीं बदलेगी और भोगवृत्ति सीमित नहीं होगी.ऐसे में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा बेटी बचाओ अभियान की पहल की पकिस्तान में क्या हर जगह सराही जानी चाहिए यदि सत्ताधारी चाह लें तो असंम्भव को भी संभव कर दें जरूरत है आज मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरह हर राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बेटी बचाओ अभियान छेड़ने की !

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