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रविवार, 30 अक्टूबर 2011

LAUH PURUSH SARDAR PATEL JAYANTI


लौह पुरुष सरदार पटेल 
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३१ अक्तूबर को उस लौहपुरुष सरदार पटेल ,जो विश्व  पटल पर अपना कोई शानी नहीं रखता , की जयंती सम्पूर्ण राष्ट्र मनायेगा | विभिन्न कार्यक्रमों में उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला जायेगा |
                  यहाँ मैं दो बिन्दुओं से चर्चा आरम्भ करना चाहूँगा .....एक उनपर कहूँगा जो सरदार पटेल के बाद उनपर चर्चा करना ही बंद कर चुके थे   १९४७ से आज तक , वे आज भी या तो चर्चा नहीं कर रहे हैं या फिर मजबूरी में ही अब उनका नाम लेने को विवश हैं ...क्योंकि अब उनकी तरकश में कोई तीर चलाने के लिए नहीं बचा है |
            दो ...उनपर जो चर्चा तो करते आ रहे हैं परन्तु केवल इतहास का रोना भर रो कर अपने वक्तव्यों,भाषणों की इतिश्री कर लेते रहे हैं |ये लोग भी राष्ट्र के मन मष्तिष्क को झकझोरने में नाकामयाब रहे हैं | इनके कार्यकलाप और संवाद कभी भी राष्ट्र की मुख्यधारा में नहीं आ पाए  और न ही ये सरदार पटेल को राष्ट्र के लिए अपरिहार्य की स्थिति में ही ला सके | फलतः ये स्वयं नेपथ्य में तो रहे ही ,सरदार को भी नेपथ्य से बाहर नहीं ला सके , राष्ट्र फलस्वरूप सरदार  की सेवाओं से ,उनके आदर्शों  से , उनकी नीतिओं से वंचित ही रहा |
                                                 सर्वप्रथम उन पर ही चर्चा कर लें जिन्होंने सरदार पर चर्चा ही नहीं की और न ही करने दी | सरदार पटेल के स्वर्ग्वाश के बाद उनकी समाधी के लिए दो गज जमीन राजधानी दिल्ली में न देने वाले भारत की सत्ता में काबिज हो गए | प्रधान मंत्री पद के लिए जिसे जनता ने चुना वह सरदार प्रधान मंत्री न बनसका और जोड़तोड़ वाले प्रधान मंत्री उनके जीते जी बन गए ,फिर उनके जाने के बाद तो गद्दी में उन्ही को बैठना ही था , जो उनका नाम भूल कर भी नहीं लेते थे |
                       सरदार पटेल अप्रासांगिक बना दिए गए ,सरदार की नीतियां , द्रह्ड़ता , राष्ट्रवाद एक किनारे और पंचशील ,भारीउद्योग, गुटनिरपेक्षता ,विश्वनेत्रत्व  अदि कथित आदर्शवाद देश में थोपे गए | आज भी यही सब कम ज्यादा हो रहा है | केंद्र में सरकारें जिन  नीतिओं पर ४७ से चल रही हैं उनसे ही राष्ट्र के क्षरण की नींव पड़ रही है | गंभीर चिंता और चिंतन का विषय है |
                                       दूसरे वे लोग और उनके विचार जो हलके फुल्के अंदाज़ में अपनी बात कह कर , जयंती मना कर  अपना फ़र्ज़ पूरा करते रहे |वे सत्ता और संसाधनों से दूरी के कारण भारत पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए | वे इतिहास का रोना रोते रहे , कुछ लोग रोने में उनका साथ देते रहे तो कुछ लोग उनकी ठिठोली करते रहे | ले दे कर सरदार  पटेल ३१ अक्टूबर की जयंती तक  या मूर्तियों तक सीमित हो कर रह गए |
                                    आज जब राष्ट्र लगातार आतंकवादियों से जूझते ,जूझते थक रहा है ,संसद का हमलावर मौज से छाती में मूंग दल रहा है , कसाब हम पर हंस रहा है , अफजल गुरु हमारा गुरु बन गया है ...देश के राज्य राष्ट्रीय अस्मिता पर हमला करने वालों ,प्रधानमंत्री की हत्या करने वालों को माफ़ी के प्रस्ताव पास कर रहे हों ....हम हरे हुए खिलाडी की तरह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं की अब सरदार पटेल से दूरी से काम न चलेगा ....अन्यथा वह दिन ही दूर नहीं जब राष्ट्र ही न बचे तब .....भयानक यक्ष प्रश्न ......
                           भ्रष्टाचार वह दूसरा मुद्दा है जिससे यह राष्ट्र न केवल आंदोलित है अपितु आकंठ  डूबा  हुआ  कराह रहा है | यहाँ भी सरदार पटेल ही उत्तर नज़र आते हैं ....पटेल के राश्ते चलने वाले नेता वह सब कर ही नहीं सकते थे जो ४७ से आज तक देश में ये करते आये हैं   |
                 राष्ट्रीय एकता और अखंडता आज तार तार हो रही है , आतंकवाद चरम पर है , भ्रष्टाचार शीर्ष पर.........तब पटेल याद ही नहीं आएंगे अपितु अब उनके अलावा  कोई रास्ता ही नहीं बचता  |
                          राष्ट्र जिस  चौराहे पर वर्षों से खड़ा है    उससे बस सफलता का , राष्ट्र निर्माण का एक ही रास्ता जाता है  और वह है ....सरदार का रास्ता ...पटेल का रास्ता | राष्ट्र की सारी समस्याओं के तालों की एक ही चाभी है ...सरदार पटेल    | आईये हम उनकी जयंती पर प्रतिज्ञां करें   की देश के एक एक बच्चे को अब पटेल की नीतिओं पर चलाएंगे  एक एक बच्चे को सरदार पटेल बनांयेंगे|
                            जयहिंद , जय पटेल |
                                                                  पटेल राज कुमार सचान 'होरी'   

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