आयिये अब राष्ट्र में, दीप ऐसा हम जलाएं|
मन के आँगन में बसे , हर घोर तम को हम भगाएं ||
रोलियां हर द्वार पर , आयिये हम मिल सजा दें ,
दीप के इस पर्व को हम, दीप उत्सव फिर मनाएं ||
राज कुमार सचान 'होरी'
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