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बुधवार, 25 जून 2014

फ़ेसबुक के विद्वान(भाग-३)

             फ़ेसबुक के विद्वान (भाग ३ )
----------------------------------- राज कुमार सचान " होरी"
                    एक सर्वे में पाया गया कि चाहे फ़ेसबुक हो या सोसल साइट्स की कोई और बुक ---ऐसे तीर यहाँ ज़्यादा चलते हैं जो या तो पहले चले ही नहीं थे और यहीं से चलना सीख रहे हैं  अथवा दूसरा वर्ग उनका है जो अपने अपने क्षेत्रों के चुके तीर हैं ---फ़िल्मों ,सीरियलों, चैनेलों ,मीडिया , सरकारी,ग़ैर सरकारी सेवाओं , राजनीति ,समाजसेवा , खेलकूद ,काव्य क्षेत्र और अपने अपने फन के माहिर । अब फन में चुक जाने पर वे यहाँ पर श्रेष्ठ धनुर्धारियों से चलने लगे । इनके तीर इतने सटीक कि अर्जुन ,कर्ण भी हार मान जाँय इनकी तीरंदाज़ी से ।
                        एक मेरे फेसबुकी मित्र जो विद्वानों की श्रेणी में आते हैं ( वैसे हैं तो अनेकों ) बेड टी फ़ेसबुक के साथ ही लेते हैं और ब्रेकफ़ास्ट ,लंच ,डिनर भी फ़ेसबुक के साथ ही करते हैं । अनेकों बार मध्य रात्रि का प्रहर फ़ेसबुक में खोये खोये बीत गया और सूर्योदय कब हुआ पता ही नहीं चला ।
         एक मेरे मित्र हैं बिना नागा प्रात: की नमस्कार , दोपहर की नमस्कार ,अपरान्ह की नमस्कार ,सायं की नमस्कार फिर रात्रि की नमस्कार करते ही करते हैं । क्या मजाल एक भी संबोधन देने से रह जाय ।अब आप ही बताइये एक विद्वान को हर रोज़ पाँच नमस्कार का उत्तर देना है और ऐसे अगर सौ मित्र हुये तो पाँच सौ बार आपको भी नमस्कार लिखना है , पोस्ट करने , कमेंट करने , लाइक करने और शेयर करने , लोड ,अपलोड के काम सो अलग ।  मैं तो कहता हूँ कि शेयर मार्केट, खेलों के बुकियों की इतनी व्यस्तता नहीं होती जितनी फेसबुकियों की होती है । ये लगातार फ़ेस में ही बुक रहते हैं ।
                     यहाँ विद्वानों के प्रभाव से अनेक कैटेगरी बन गयी हैं । प्रजा और सर्वहारा वर्ग के फेसबुकियों का हाल यहाँ भी दयनीय है ,वे कभी इसको तो कभी उसको सर सर कहते  कहते बस यहाँ समय काटते हैं । उन्हें बस लाइक बटन दबाने की जन्म जात स्वतंत्रता भर है , गल्ती से कमेंट कर बैठे तो विद्वानों की ऐसी मार यहाँ पड़ती है कि फिर या तो कुछ दिन फ़ेस ख़राब करवा कर घर बैठ जाते हैं या फिर विद्रोही और आतंकवादी बन जाते हैं  और अनाप सनाप कमेंट करने लग जाते हैं --- लड़ाई  अनफ्रेंड और ब्लाक्ड तक पहुँच जाती है ।
               फ़ेसबुक के विद्वानों की लाइक और मेसेजिंग की लड़ाई में कभी कभी दंगाई भी हाथ सेंक लेते हैं । सरकारें बीच में आ जाती हैं  और फिर मज़े में आ जाती है पुलिस --- देश की वास्तविक न्यायपालिका ।
                    फ़ेसबुक की वैसे तो अनेक बीमारियाँ हैं पर विद्वानों को सर्वाधिक ग्रसित करने वाली बीमारी है " लाइकाइटिस" और इसका इलाज भी और कुछ नहीं है । है ,बस "लाइकोज" । ग्लूकोज का कार्य करता है लाइकोज । फेसबुकिये विद्वान की किसी भी पोस्ट, फ़ोटो (वह कितनी घटिया है,सिरफिरी है बिना विचारे ) पर जितने अधिक लाइक मिल जाँय समझो  लाइकोज से उसका इलाज हो गया । विद्वान फूल कर कुप्पा -- उस दिन वह अपने लाइकों का बखान करता रहेगा बिना खाये पिये ।
                  वैसे तो आज कल "कैंडी क्रश सागा " जैसे अनेकों गेम यहाँ आ गये हैं पर मेरा दावा है कि  "लाइकवा" का खेल सबसे आकर्षक , आज भी है । परम विद्वान लाइकार्जित करने के लिये कई उपाय प्रयोग में लाते रहे हैं । चलिये आपको भी बता दें , आप के भी अच्छे दिन आ जाँय । हम भाजपा वाले जो ठहरे ,कांग्रेस की तरह कुछ छुपाते नहीं । एक --- मित्रों के मध्य अलिखित समझौता कर लें कि मैं तेरी बटन दबाऊँ ,तू मेरी बटन दबा - लाइक वाली । इसमें किसी का नुक़सान नहीं फ़ायदा दोनों का । अगर भारत पाकिस्तान में भी इस तरह का समझौता हो जाय तो ज़माने की दुश्मनीं एक पल में ख़त्म ।
                 फ़ेसबुकी  विद्वान मित्रों से अनुरोध है कि मेरा यह शांति फ़ार्मूला मोदी जी और शरीफ़ जी तक पहुँचा दे । क्या पता समझौता लागू ही हो जाय और मुझे विश्व शांति का नोबेल पुरुष्कार ही मिल जाय ।  वैसे मैं जानता हूँ मेरे विद्वान मित्र यह गल्ती शायद न करें , मुझे नोबेल मिले तो वे क्या लेंगे  बाबा जी का ठुल्लू ?
विद्वानों में विद्वता की कसौटी ही उनमें पाया जाने वाला ईर्श्या भाव है , यही न हो तो विद्वान किस बात के ?!
----------------------------- क्रमश:
( अगले भागों में पढ़िये , भागियेगा नहीं )
                                                            राज कुमार सचान "होरी"
Email --rajkumarsachanhori@gmail.com.  चलित भाष 9958788699  दिनांक 21 जून 14
                   

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