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बुधवार, 25 जून 2014

फ़ेसबुक के विद्वान(भाग-१)

                                      फ़ेसबुक के विद्वान (भाग १ )

--------------------------------राज कुमार सचान "होरी"
                    लेख के आरम्भ में ही मैं स्पष्ट कर दूँ कि फ़ेसबुक के विद्वान इसे व्यंगलेख कृपया न समझें और दूसरी महत्वपूर्ण सूचना कि कोई भी वास्तविक विद्वान ख़ुद को इस लेख का सुपात्र क़तई न माने ।

            फ़ेसबुक आभासी दुनिया है, काल्पनिक मित्रता है तो फिर इतने विद्वान फेसबुकीय समाज में ! मैं क्यों दावा करूँ कि मैं वास्तविक हूँ ----सोशल एक्टिविष्ट अथवा मित्र । आप मान सकने के लिये पूर्ण सक्षम और समझदार हैं कि मैं न तो राज कुमार सचान होरी हूँ और न ही जो फ़ेसबुक आई डी का चित्र है वह ही मेरा है ।
     हो सकता है मैं जो हूँ वह हूँ या मैं जो हूँ वह नहीं हूँ  या मैं जो नहीं हूँ वह हूँ या मैं जो नहीं हूँ वह नहीं हूँ । अब आप सोचते रहें कि मैं वास्तव में हूँ क्या ? हूँ कैसा ? और हूँ कितना ?  आप स्वतंत्र हैं कुछ भी सोचने के लिये ,कुछ भी करने के लिये मैं कौन होता हूँ मना करने वाला । यही आपकी शक्ति है जो सरकारों तक को हिला देती है । यहाँ तक कि जिन्हें यहाँ मित्र कहते है उनको धूल चटा सकती है , उनको दिन में तारे दिखा सकती है
           फ़ेसबुक या इसी तरह की आभासी बुकों  में कहीं भी शत्रु नाम का पात्र नहीं है । ये ऐसी दुनियाँ हैं जहाँ शत्रु भी मित्र ही होते हैं । यहाँ या तो मित्र बनाते हैं या नहीं बनाते अथवा बना कर अनफ्रेंड (मित्र) कर देते हैं । शत्रु का कन्सेप्ट ही नहीं । हाँ ,किसी मित्र की गतिविधियों से जब आप बहुत सुखी हो जाते हैं या अतिशय प्रभावित हो जाते हैं अथवा आनन्दित हो जाते हैं तब आप उसे "ब्लाक" भर कर देते हैं ,परन्तु उसे तब भी शत्रु नहीं कहते । यही तो है आज का स्वर्ग कोई शत्रु नहीं सब मित्र ही मित्र ।
       अनफ्रेंड और ब्लाक्ड फ़्रेंड भी नयी आई डी के साथ , नई पहचान के साथ उतर आते हैं और फिर चालू हो जाते हैं । गीता ने इसी के लिये बहुत पहले ही कह दिया था ----वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृहणाति नरोपराणि ।तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संययाति नवानि देही ।
     बार बार ,लगातार यहाँ आत्माओं का अवतार होता है । बल्कि इसकी कल्पना तो गीता ने भी नहीं की थी उस दुनिया में जितनी आत्माये उतने शरीर और वह भी एक शरीर को त्यागना पड़ेगा । यहाँ तो हम वैज्ञानिक और धार्मिक रूप से प्रगति कर गये है एक एक आत्मा एक साथ अनेकों शरीर धारण कर सकती है ,वह भी बिना मरे ही । यहाँ यह भी बन्धन नहीं कि नर नर रहेगा , नारी नारी रहेगी । पुल्लिंग स्त्रीलिंग या उभयलिंग कुछ भी कभी भी एक साथ । लोग कहते थे कि अच्छे दिन आने वाले हैं उन्हें पता नहीं ये तो न जाने कब आ गये थे ---जब से फ़ेसबुक जैसी महान बुकों का अवतरण हुआ था तभी से ।
           हे मेरे फेसबुकीय विद्वानों ! धैर्य रखो अगले अंक में आपके निकट पहुँचूँगा तब तक के लिये शुभ कामना । खुदा हाफ़िज़ good night .
                                                       राज कुमार सचान "होरी"
Email -- rajkumarsachanhori@gmail.com     चलित भाष । 9958788699

फ़ेसबुक के विद्वान(भाग-२)

                   फ़ेसबुक के विद्वान ( भाग २)
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            एक युग था श्रुति काल । सब कुछ सुना सुनाया --- एक दूसरे से सुनते और एक दूसरे को सुनाते चले गए और देखते देखते मनु सतरूपा के वंशज , आदम - हौवा के उत्तराधिकारी जंगलों में न फिर कर ; घर बसाने लगे ।
            सुनने सुनाने से अधिक जब लोग लिखने के विद्वान बन गये तो भोज पत्र खोजा और पीढ़ी दर पीढ़ी उसी में लिख मारा । अब यह काल भी जाना था सो चला गया । पुस्तकों का युग आ गया । लेकिन पुस्तक और पुस्तक वाले तो दौड़ में पिछड़ गये books वाले आगे निकल गये । हिन्दी के बच्चों से ले कर बुड्ढों तक पुस्तकें कम लिखते पढ़ते हैं books लिखने पढ़ने में वे भी आगे निकल गये ।भला हो गोरों का हमें आगे बढ़ाया , हम कुछ बन पाये या नहीं , हाँ "बुक वर्म" बनना था सो बन गये ।
               प्रिंट से एलेक्ट्रानिक युग आया और अब आ गया दोनों का मिश्र युग । हम खिचड़ी का त्यौहार मनाने वाले लोग हिन्दी अंग्रेज़ी की खिचड़ी पका भी रहे हैं और मज़े से हिंगलिश नाम से खा भी रहे हैं । दुनिया ने हमसे" शून्य" का ज्ञान ही नहीं लिया बल्कि हर चीज़ की खिचड़ी बनाने का हुनर भी हमसे लिया ।
                अब प्रिंट और एलेक्ट्रानिक के मिल कर खिचड़ी बनने की प्रक्रिया में "फ़ेसबुक" जैसी अनेक रेसिपी की उत्पत्ति तो होनी थी सो हो गयी ।
         जैसे कभी हमारे पूर्ववज विद्वान भोजपत्रों की तरफ़ दौड़े थे , कभी छापेखानों की तरफ़ तो कभी पुस्तकों , बुकों की ओर  वैसे ही दौड़े एलेक्ट्रानिक चैनलों की ओर । अब क्या मजाल कोई चैनेल बहस , परिचर्चा ,डिबेट आयोजित करें और कोई विद्वाननुमा साथी उसमें न हो ।
         चैनेल वाले जान  भी गये और मान भी गये कि उन्हें अगर चैनेल चलाना है तो इन विद्वानों को सम्मान देना ही पड़ेगा , सो देने लगे --- अब वह सम्मान चाहे चैनेल से घर तक गाड़ी भेजने का हो या अत्यंत हल्का लिफ़ाफ़ा देने का हो , सब चलने लगा , विद्वान वही जो बिना पैसे से भी ख़ुश हो जाय सो वे ख़ुश होने लगे , विद्वान जो ठहरे ।
               न्यूज़ चैनेल ही क्यों ? मनोरंजन, फ़िल्म वाले भी तो लिख्खाड़ विद्वान ---लेखक, गीतकार, स्क्रिप्ट राइटर,कथाकार कहाँ से लाते  ? उन्हें भी हमारी बिरादरी वालों ने सहारा दिया ।
         खिचड़ी वैसे भी सुपाच्य होती है । खिचड़ी वर्ग की रेसिपी फ़ेसबुक तो इतनी सुपाच्य और शीरी निकली कि इसके खाने से लोगों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य एकदम से सुधर गया , उनके अच्छे दिन तुरन्त आ गये । जिसने इसका स्वाद नहीं चखा वह पिछड़ा घोषित कर दिया गया ।
                     जब पहली बार मुझसे किसी ने पूछा था कि आप फ़ेसबुक में हैं ? तो भगवान झूठ न बुलवाये मैंने हाँ कह दिया था जबकि मैंने नाम तक नहीं सुना था इस बुक का । पहले सोचा कि पूछ लूँ कौन लेखक हैइस बुक का ?कब मार्केट में आई ? पर मेरी हिम्मत न पड़ी  , विद्वान जो ठहरा । कहीं उसको मेरी विद्वता पर शक हो जाता तो ज़िन्दगी भर की मेरी विद्वताई मिट्टी में मिल जाती ।।
            बहुत दिनों बाद पता चला कि यह कितनी उम्दा बुक है ! इसमें तो फ़ेस को ही बुक बना दिया गया । जितना सुन्दर फ़ेस उतनी सुन्दर बुक । क़ीमती चेहरा क़ीमती बुक । कई समझदार मित्रों ( याद रहे यहाँ कोई शत्रु नहीं है ) ने कुछ ज़्यादा ही समझदारी दिखाई और "गणिका" "रम्भा" टाइप के कमनीय फ़ेस लगा कर ,नारी नामधारी आई डी बना कर सच्चे फेसबुकिये बन गये । कमाल देखिये कि फेसबुकी विद्वान भी इनकी आई डी में ऐसे रमें जैसे मधुमक्खी शहद के छत्ते में ।
           ऐसे फेसों की बुकों के लाइक तो इतनी भारी संख्या में आते कि अनेकों बार गिनीज़ बुक वालों और फ़ेस बुक वालों का सर्वर ही क्रैश कर गया । कहते हैं विद्वान वही जो कला का पारखी हो सो कला के इन पारखियों नें ऐसे फेसों पर दाव लगाये और उनके कमेंट बाक्स में घुस घुस कर उनको अपने से बड़ा विद्वान घोषित कर दिया । कई विद्वान तो इतने रच बस गये कि वे इन चेहरों के कमेंट बाक्स में ही स्थाई रूप से रहने लगे । उनको कमेंट बाक्स के बाहर पुरुषार्थ दिखता ही नहीं था । कई तो घर बार, खाना पीना  सब छोड़ बस फ़ेसबुक में पड़े रहने लगे ।
            कुछ ने तो रात रात भर चैट किया । मैंने चैट को परिभाषित किया कि जब मन उचाट रहने लगे फिर भी चटकारे लेने के लिये मन बल्लियों उछले तो हवा में शब्द संवाद को चैटिंग कहते हैं ।चाटने की लत ऐसी लगी कि सोसल समाज का चैटिंग बड़ा रोग  बन गया । विद्वानों ने भी चैटिंग अपना ली , कई तो इस श्रेणी में युवकों, युवतियों से भी बाज़ी मार ले गये ।
          फ़ेसबुक के ऐसे परम ज्ञानी चैटियों से तो मजनू, फ़रहाद,हीर तक बुरी तरह जलने लगे , ईर्श्या करने लगे । उनका कहना था कि वे तो बाक़ायदा चेहरे देख कर , मिल कर ,बैठ कर दाँव लगाते थे लेकिन ये हमारे उत्तराधिकारी तो हमसे आगे निकल गये । बस कल्पना में ही दाँव । हवा में ही इश्क़ ।
            एक घोड़ा , एक घोड़ी फ़ेसबुक में वर्षों से चैटिया रहे थे ।जीने मरने की क़समें खाते खाते आख़िर एक दिन एक स्थान पर मिलने पहुँच गये । पहली बार सामने पड़ें  तो देखा कि घोड़ी तो घोड़ी थी पर घोड़ा  घोड़ा न हो कर खच्चर था वह भी पुरानी पीढ़ी का । मामला पुलिस तक पहुँचा । अब पुलिस में क्या हुआ हमसे न कबुलवाइये । आप सब हमसे अच्छी तरह जानते हैं , बड़े विद्वान जो हैं ।
                  वैसे सच्ची बात तो यही है कि एक युवा ने युवाओं के लिये ही यह बुक लिखी और छापी थी , मगर ये बुड्ढे,खूसट मानते कहाँ हैं यहाँ भी अपने पुराने औज़ारों के साथ क़लम ,दवाअत लेकर घुस लिये । ताल ठोक कर कहने लगे ----
              ' कौन कहता है बुढ़ापे में इश्क़ का सिलसिला नहीं होता ?
              आम तब तक मज़ा नहीं देता ,जब तक पिलपिला नहीं होता ।'
...................             ...........................           .................
            ' कौन कहता है बुड्ढे को  इश्क़ का हक़ नहीं होता ?
               यह और बात है  कि उस पर किसी को शक नहीं होता ।'
                          फ़ेसबुक में जो काव्य प्रतिभा के विद्वान हैं उनसे तो फ़ेसबुक को बस भगवान ही बचाये । ज़िन्दगी में कभी एक चिट्ठी तक पोस्ट न की होगी पर इतनी कवितायें पोस्ट कर डालते हैं कि कविता भी उनके हाथ में छटपटाती है और पीछा छुड़ाने के लिये ख़ुद ही पोस्ट हो जाती है और फ़ेसबुक काव्य जगत की अमर रचना बन जाती है । नित नई काव्य प्रतिभाओं का आगमन और नित नवीन कविताओं का सृजन तो फ़ेसबुक की आम घटना है । समीक्षक फ़ेसबुक काव्यशास्त्र पर क़लम चलाने की हिम्मत तक नहीं उठा पा रहे हैं । हाँ , कुछ अच्छे फेसों की उन्हें भी तलाश है ,मिलते ही फेसबुकीय समीक्षायें आने लगेगी ।
            {क्रमश: }
                                     राज कुमार सचान "होरी"
email--rajkumarsachanhori@gmail.com  चलित भाष --9958788699      दिनांक 21 जून 14


फ़ेसबुक के विद्वान(भाग-३)

             फ़ेसबुक के विद्वान (भाग ३ )
----------------------------------- राज कुमार सचान " होरी"
                    एक सर्वे में पाया गया कि चाहे फ़ेसबुक हो या सोसल साइट्स की कोई और बुक ---ऐसे तीर यहाँ ज़्यादा चलते हैं जो या तो पहले चले ही नहीं थे और यहीं से चलना सीख रहे हैं  अथवा दूसरा वर्ग उनका है जो अपने अपने क्षेत्रों के चुके तीर हैं ---फ़िल्मों ,सीरियलों, चैनेलों ,मीडिया , सरकारी,ग़ैर सरकारी सेवाओं , राजनीति ,समाजसेवा , खेलकूद ,काव्य क्षेत्र और अपने अपने फन के माहिर । अब फन में चुक जाने पर वे यहाँ पर श्रेष्ठ धनुर्धारियों से चलने लगे । इनके तीर इतने सटीक कि अर्जुन ,कर्ण भी हार मान जाँय इनकी तीरंदाज़ी से ।
                        एक मेरे फेसबुकी मित्र जो विद्वानों की श्रेणी में आते हैं ( वैसे हैं तो अनेकों ) बेड टी फ़ेसबुक के साथ ही लेते हैं और ब्रेकफ़ास्ट ,लंच ,डिनर भी फ़ेसबुक के साथ ही करते हैं । अनेकों बार मध्य रात्रि का प्रहर फ़ेसबुक में खोये खोये बीत गया और सूर्योदय कब हुआ पता ही नहीं चला ।
         एक मेरे मित्र हैं बिना नागा प्रात: की नमस्कार , दोपहर की नमस्कार ,अपरान्ह की नमस्कार ,सायं की नमस्कार फिर रात्रि की नमस्कार करते ही करते हैं । क्या मजाल एक भी संबोधन देने से रह जाय ।अब आप ही बताइये एक विद्वान को हर रोज़ पाँच नमस्कार का उत्तर देना है और ऐसे अगर सौ मित्र हुये तो पाँच सौ बार आपको भी नमस्कार लिखना है , पोस्ट करने , कमेंट करने , लाइक करने और शेयर करने , लोड ,अपलोड के काम सो अलग ।  मैं तो कहता हूँ कि शेयर मार्केट, खेलों के बुकियों की इतनी व्यस्तता नहीं होती जितनी फेसबुकियों की होती है । ये लगातार फ़ेस में ही बुक रहते हैं ।
                     यहाँ विद्वानों के प्रभाव से अनेक कैटेगरी बन गयी हैं । प्रजा और सर्वहारा वर्ग के फेसबुकियों का हाल यहाँ भी दयनीय है ,वे कभी इसको तो कभी उसको सर सर कहते  कहते बस यहाँ समय काटते हैं । उन्हें बस लाइक बटन दबाने की जन्म जात स्वतंत्रता भर है , गल्ती से कमेंट कर बैठे तो विद्वानों की ऐसी मार यहाँ पड़ती है कि फिर या तो कुछ दिन फ़ेस ख़राब करवा कर घर बैठ जाते हैं या फिर विद्रोही और आतंकवादी बन जाते हैं  और अनाप सनाप कमेंट करने लग जाते हैं --- लड़ाई  अनफ्रेंड और ब्लाक्ड तक पहुँच जाती है ।
               फ़ेसबुक के विद्वानों की लाइक और मेसेजिंग की लड़ाई में कभी कभी दंगाई भी हाथ सेंक लेते हैं । सरकारें बीच में आ जाती हैं  और फिर मज़े में आ जाती है पुलिस --- देश की वास्तविक न्यायपालिका ।
                    फ़ेसबुक की वैसे तो अनेक बीमारियाँ हैं पर विद्वानों को सर्वाधिक ग्रसित करने वाली बीमारी है " लाइकाइटिस" और इसका इलाज भी और कुछ नहीं है । है ,बस "लाइकोज" । ग्लूकोज का कार्य करता है लाइकोज । फेसबुकिये विद्वान की किसी भी पोस्ट, फ़ोटो (वह कितनी घटिया है,सिरफिरी है बिना विचारे ) पर जितने अधिक लाइक मिल जाँय समझो  लाइकोज से उसका इलाज हो गया । विद्वान फूल कर कुप्पा -- उस दिन वह अपने लाइकों का बखान करता रहेगा बिना खाये पिये ।
                  वैसे तो आज कल "कैंडी क्रश सागा " जैसे अनेकों गेम यहाँ आ गये हैं पर मेरा दावा है कि  "लाइकवा" का खेल सबसे आकर्षक , आज भी है । परम विद्वान लाइकार्जित करने के लिये कई उपाय प्रयोग में लाते रहे हैं । चलिये आपको भी बता दें , आप के भी अच्छे दिन आ जाँय । हम भाजपा वाले जो ठहरे ,कांग्रेस की तरह कुछ छुपाते नहीं । एक --- मित्रों के मध्य अलिखित समझौता कर लें कि मैं तेरी बटन दबाऊँ ,तू मेरी बटन दबा - लाइक वाली । इसमें किसी का नुक़सान नहीं फ़ायदा दोनों का । अगर भारत पाकिस्तान में भी इस तरह का समझौता हो जाय तो ज़माने की दुश्मनीं एक पल में ख़त्म ।
                 फ़ेसबुकी  विद्वान मित्रों से अनुरोध है कि मेरा यह शांति फ़ार्मूला मोदी जी और शरीफ़ जी तक पहुँचा दे । क्या पता समझौता लागू ही हो जाय और मुझे विश्व शांति का नोबेल पुरुष्कार ही मिल जाय ।  वैसे मैं जानता हूँ मेरे विद्वान मित्र यह गल्ती शायद न करें , मुझे नोबेल मिले तो वे क्या लेंगे  बाबा जी का ठुल्लू ?
विद्वानों में विद्वता की कसौटी ही उनमें पाया जाने वाला ईर्श्या भाव है , यही न हो तो विद्वान किस बात के ?!
----------------------------- क्रमश:
( अगले भागों में पढ़िये , भागियेगा नहीं )
                                                            राज कुमार सचान "होरी"
Email --rajkumarsachanhori@gmail.com.  चलित भाष 9958788699  दिनांक 21 जून 14
                   

फ़ेसबुक के विद्वान (भाग-४)

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फ़ेसबुक के विद्वान ( भाग - ४)
24 June 2014 at 11:36
फ़ेसबुक के विद्वान ( भाग ४)

--------------------------------------राज कुमार सचान "होरी"
लाइक का गेम ज़मींदारों , राजाओं -महाराजाओं और नवाबों जैसे सम्मानित आदरणीयों के लिये यहाँ भी आसान है जीवन के सारे " गेमों " की तरह । एक तो प्रजा श्रेणी के फेसबुकिये इनकी आई डी ढूँढ ढूँढ कर फ़्रेंड रिक्वेष्ट भेजते हैं ,मित्र बन गये तो अहोभाग्य नहीं फ़ॉलोवर तो बन ही जाते हैं । अब आप ही बतायें कोई फ़ालोअर की हैसियत कम होती है ? बस फ़ालोअर किस हस्ती के हैं इस पर आपकी क़ीमत डिपेंड करती है ।
बड़े लोग तो एक छोटी आई डी क्या ?पूरा पेज ही खोल लेते हैं । जनता तो झक मार कर इनकी लाइक बटन दबायेगी ही और बाक़ी लाइक स्पोंसोर्ड कैटेगरी से आनी तय । अख़बारों ,दूरदर्शनों में कीर्तिमानों के साथ इनके नाम आने लगते हैं । पैसे वाले फ़ेसबुक को पेमेट करते हैं " लाइक" बढ़ाने के लिये । सर्वे गुणा: कांचनमाश्रयन्ति ।
अपना भाव बढ़ाने का एक आसान तरीक़ा यह भी है कि आप बिना देखें ,सोचे समझे हर किसी की "लाइक" बटन दबाते जाइये बदले में वह भी जिसकी बटन आप ने दबाई है वह आपकी बटन कभी न कभी दबायेगा ही । अगर फिर भी वह न दबाये तो मेसेज में जा कर उससे एक अनुरोध कर दीजिये ---' हे मित्र ! देखो मैं आपकी लाइक बटन बार बार दबा रहा हूँ आप मुझ पर दोस्ती का करम करिये ,कम से कम मेरा भी सम्मान रखिये । एक बार ही बटन दबा दीजिये ।
फ़ेसबुक में विद्वान लोग अपना स्थान उच्च का स्थापित करने के लिये एक उपाय और अपनाते हैं , मैं आपका परम हितैषी होने के नाते बता रहा हूँ --आप वीआई पी फेसबुकियों के कमेंट बाक्स में जा कर तारीफ़ के पुल बाँधा करें । वे कुछ भी लिखें , कितना भी घटिया लिखें ,आप बस तारीफ़ ही करें । आप को ज़्यादा लिखना न आता हो तो कोई बात नहीं मैं हकीम लुकमान का आज़माया नुश्खा बताये देता हूँ । हमारी फ़ीस बस इतनी कि हमें भी कुछ लाइक ठोक देना ।
आप कमेंट में लिखें ---" सुन्दर " , "अतिसुन्दर" , "वाह" "बहुत ख़ूब" " क्या कहने" " "वाउ" nice , very fine , excellent . या ऐसे चिन्ह जिन्हें फ़ेसबुक ने आपके लिये ही बनाया है उनका स्तेमाल करें ।
धीरे धीरे आप के लाइक बढ़ जायेंगे और एक दिन निश्चित ही विद्वान , सेलेब्रिटीज़ फेसबुकिये बन जायेंगे आप भी । मेरी बधाई एडवांस में ले लीजिये । वैसे फ़ेसबुक में हैं तो बधाई लेने देने की हसीन बीमारी से आप भी ग्रस्त हो ही चुके होंगे ।
एक मार्के की बात अभी से बता दूँ - जब आप उच्च श्रेणी में आ जायें तब भूल कर भी किसी की लाइक बटन न दबाइयेगा , इससे आपका स्टैंडर्ड गिरेगा । किसी की पोस्ट , फ़ोटो कितना भी पसन्द आये ख़बरदार आप उसको लाइक न करें आपका बाज़ार भाव धड़ाम से गिर जायेगा । आप ऐंठे ही रहिये । " ऐंठे रहना आपका स्थाई भाव होना चाहिये , यही असली विद्वान और सेलेब्रिटीज़ की मूल पहचान है ।
फ़ेसबुक के असली विद्वान वही हैं जो न किसी के कमेंट बाक्स में जाते हैं न लाइक दबाते हैं । हाँ ,बस हर एकाध घंटे में कोई न कोई फड़फड़ाती , तड़फड़ाती ,गरमाती -- नज़ाकत से लदी फंदी या फिर ऊटपटांग टाइप की पोस्ट फ़ेसबुक के हवाले कर देते है । लो झेलो फिर के अंदाज में ।
नई नई जिंस फ़ेसबुक मार्केट में डालने का जो बड़ा काम करते हैं ,हम उनको सलाम , राम राम , प्राणाम करते हैं ये वे ही महान आत्मायें हैं जिनकी वजह से फ़ेसबुक की "वाल" आज तक खड़ी है । ये न होते तो कब की वाल दीवाल बन कर भरभरा कर गिर जाती । ऐसे लिख्खाड़ विद्वान स्वर्गवासी हो कर भी ज़िन्दा रहेंगे ( बस फ़ेसबुक का सर्वर ज़िन्दा रहे ) । फ़ोटो , वीडियो डालने वाले विद्वान , कलाकार भी महानता की कंचनजंगा, केटू तो हैं ही उनको कैसे भूल सकता हूँ , इनकी कृपा से ही फ़ेसबुक रंगीन है ।
--------------------------- क्रमश: ----- ( पढ़ते रहिये अगले भागों में, भागियेगा नहीं। बस मुझे भी एक लाइक, एक कमेंट )
-------------------------------- राज कुमार सचान "होरी"
Email - rajkumarsachanhori@gmail.com चलित भाष ०९९५८७८८६९९
सम्पादक - पटेल टाइम्स , राष्ट्रीय अध्यक्ष -- बदलता भारत

फ़ेसबुक के विद्वान (भाग-५)

                 फ़ेसबुक के विद्वान (भाग -५)
--------------------------- राज कुमार सचान "होरी"
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                  अब मेरे आम पाठक भी ४ भागों को पढ़ कर "लाइक" के "लायक" तो हो ही गये होंगे ।थोड़ी देर के लिये लाइक का मोह छोड़ कर ( वैसे यह मोह छूटेगा नहीं जब तक फ़ेसबुक है ) ,फिर भी मोह भंग ही मान लीजिये ,अब  आगे पढ़िये । क्योंकि जब सारी कोशिशों के बाद भी आपको लाइक नहीं मिलेगा तो झ़क मार कर आप करेंगे भी क्या ? बाबा जी का ठुल्लू ।
                   हसीनाओं की ६४ कलाओं से भी कई गुनी अधिक कलायें उन्हें आ ही जाती हैं जो किसी न किसी तरह के और किसी न किसी विषय के विद्वान हो जाते हैं , अगर विद्वान फ़ेसबुक वाले हैं तो यही कहूँगा ---एक तो केरला ,दूजे नीम चढ़ा ।।
                             तो नीम चढ़े विद्वानों को प्रणाम करते हुये उनकी अनुमति से भाग ५ की कथा आरम्भ करता हूँ । यहाँ पाँच हज़ारी मनसबदारों की बड़ी पूछ है । यदि आप पाँच हज़ारी नहीं बने हैं तो बार बार पोस्ट करिये कि लोग फ़्रेड रिक्वेस्ट न भेजें , वह बहुत सोच समझ कर मित्र बनाते हैं , पूरा परीक्षण करते हैं  या फिर उन्हें हल्के फुल्के मित्र पसन्द नहीं । मेरे पास पहले ही मित्रों की लम्बी प्रतीक्षा लाइन है , आप मुझे शर्मिन्दा न करें । यह सब लिखने से इन साहब के भाव बढ़ जाते हैं । फिर आप विश्वास मानिये आपके पास और लम्बी लाइन लग जायेगी । आप यह नुश्खा आज़मा कर तो देखिये , अनुभूत योग है ।
                ये वाले साहबान फ़्रेंड रिक्वेस्ट के लिये लालायित बैठे रहते हैं , मगर भाव बनाने के लिये मार्केट में अपनी स्कैर्सिटी बताते हैं फिर आप अर्थ शास्त्र का सिद्धान्त जानते ही हैं जिस चीज़ की कमी उसकी माँग बढ़ गई । तो हे मेरे मित्र!  आप भी उनकी तरह अपनी कृत्रिम कमी बना कर अपने भाव उज्ज्वल कीजिये । चलिये अपने इस क़ीमती और परीक्षित नुस्खे पर आप से न तो मैं लाइक ही माँग रहा हूँ और न ही कमेंट । मुझे पता है आप माँगने पर देंगे भी नहीं , नहीं मांगूँगा तो ढेर सारे देंगे ।
                   एक विद्वान साथी हैं नाम नहीं बताऊँगा आप को छोड़ कर ही हैं । वह जहाँ भी जाते हैं वहीं सबको फ़ेसबुक के गुण बताते हुये मित्रता का हाथ बढ़ाते हैं । अपना लैपटॉप ले कर चलते हैं और लोगों की आई डी बना कर ख़ुद को रिक्वेस्ट भेज कर ख़ुद ही एक्सेप्ट कर लेते हैं और उनका अभियान दिन दूना रात चौगुना फल फूल रहा है । मोदी और ओबामा से कम्पटीशन मानते हैं । आज कल खाना पीना सब हराम है । रात दिन बस इसी में लगे हैं । पत्नी , बच्चे सब परेशान , वे दुखी होते हैं ,परेशान होते हैं तो समझाते हैं कि बस कुछ दिनों का कष्ट है अच्छे दिन आने वाले हैं वह दुनिया के सबसे सफल व्यक्तिहोने वाले हैं ।
                              एक मेरे मित्र हैं वह यथार्थ वादी हैं और उन्हे अपने शोध पर विश्वास है । उन्होंने फेसबुक की कमज़ोर नश पकड़ ली है । वह कमाल के हैं अपनी मित्र संख्या बढ़ा रहे हैं , हमें भी राज नहीं बताते , असल में उन्हें मुझ पर विश्वास नहीं है । कहते हैं होरी जी आप मुझे अपने लेख का हिस्सा बना देंगे । चलिये आप राज जान जाइयेगा तो  मुझे भी बताइयेगा ज़रूर ।
                  जो विद्वान पाँच हज़ारी येन केन प्रकारेण बन जाते हैं तो फिर चुप नहीं बैठते हैं । लोग जानेंगे कैसे कि आप विशिष्ट क्लब के महान सदस्य हैं , इस लिये आये दिन एक पोस्ट दुख भरी , फेसबुकियों पर मल्हम  लगाती हुयी ज़रूर डालते रहते हैं कि लानत हो फ़ेसबुक पर पाँच हज़ार की सीमा बना रखी है । हम आपको मित्र कैसे बनायें , हमारे पहले ही पाँच हज़ार हैं ।  हाँ , समय समय पर बधाइयाँ लेते ज़रूर रहिये कि आप पाँच हज़ारी हैं ।
                  कुछ विद्वानों ने फ़ैन क्लब बना रखे हैं । माफ़ करियेगा फैनों ने यह कार्य नहीं किये , ख़ुद मैनों  और वूमैनों ने किये हैं ।, ख़ुद ही आपरेट करते हैं नाम दे रखे हैं फ़ैन क्लब । आप अपने लिये न समझें , आप के तो सही में फ़ैन हैं और वास्तविक क्लब भी हैं । लेकिन बात सोलहों आने सच है औरों के लिये । आप का क्या विचार है श्रीमन् , बना डालिये न एक ठोर आप भी । बस सावधानी बताये देता हूँ अपनी फ़ेसबुक आई डी से न बनाइयेगा । आप तो वैसे भी समझदार हैं -- यह बचकानी गल्ती नहीं करेंगे ।
                     पाँच हज़ारी एक नुश्खा अपनाते हैं ,जब आप पाँच हज़ारी हो जाँय तो अपनाइयेगा ज़रूर ,अभी से नोट कर लीजिये । अपने नाम का एक पेज बनाइये और उस को लाँच करते हुये फूट फूट कर करुण रस में रोइये कि हे मेरे फ़ेसबुक के राहगीरो तुम्हें अपने साथ लेने के लिये ऐसा किया है , ताकि आप न मित्र सही तो जुड़ तो जायेंगे मित्र की तरह ( बीच बीच में फ़ेसबुक को कोशिये कि उसने ५ हज़ार की सीमा क्यों बनायी ) । अब आपके दोनों हाथों में लड्डू । आप का पेज भी चल निकलेगा । आप कितने कलाकार हैं   बस चमत्कार पैदा करिये आप का पेज दौड़ पड़ेगा ।
        आगे ;  पेजों को दौड़ाने के नायाब नुस्खे हैं पढ़ते रहिये --------- फ़ेसबुक के विद्वान ।
          ---------------------------क्रमश: ----- ( हाँ, हमारे पेज पर लाइक का बटन न दबाइयेगा, फिर वही लाइक , " सारी" )
---------------------------------राज कुमार सचान " होरी"
Email -- rajkumarsachanhori@gmail.com चलित भाष 9958788699
प्रधान सम्पादक -- पटेल टाइम्स । राष्ट्रीय अध्यक्ष - बदलता भारत

गुरुवार, 19 जून 2014

पटेल टाइम्स नये कलेवर में ,साज सज्जा के साथ

मित्रों ,

आपकी पत्रिका पटेल टाइम्स नये कलेवर में कुछ नये स्तम्भों के साथआपके हाथों होगी माह अगस्त से ।

कृपया भेजें ----लेख, समाचार ,गतिविधियाँ ,कवितायें ,कहानियाँ , युवक-युवती विवरण(विवाह हेतु) ,सुझाव । प्रकाशन सामग्री हमें १५ जुलाई तक अवश्य पहुँच जाये ।

प्रत्येक माँह सामग्री १५ तारीख़ तक पहुँचनी आवश्यक होगी ।

विज्ञापन भी भेज सकते हैं । दरें हैं ---

रंगीन कवर प्रष्ठ -- 25 हज़ार , रंगीन अंदर के प्रष्ठ -18 हज़ार , अंदर साधारण प्रष्ठ - 10 हज़ार । आधा प्रष्ठ क्रमश: --15हजार, 11 हज़ार और 6 हज़ार ।सभी रुपयों में । आप रेट लिस्ट मँगा सकते हैं ।

मैगज़ीन की प्रकाशित सामग्री का कुछ अंश पटेल टाइम्स के ब्लाग तथा फ़ेसबुक के पेज और ग्रुप में भी प्रकाशित की जायेगी । निम्न पते पर सामग्री भेज सकते हैं ------- 

सम्पादक , पटेल टाइम्स

63, NITI KHAND  3Rd  ,INDIRAPURAM ,GHAZIABAD . You may send through emails also -----horisardarpatel@gmail.com , kurmikshatriyamahaasangh@gmail.com

हमें आवश्यकता है प्रत्येक नगर और जनपदों के लिये ब्यूरो चीफ़ और संवाददाताओं की । अपना बायोडाटा उक्त email पर भेजें । साक्षात्कारः के लिये आहूत किया जायेगा ।

                                                                           राजकुमार सचान होरी 

                                                    प्रधान सम्पादक  पटेल टाइम्स (मासिक) 

Mob 09958788699 , 07599155999

पटेल टाइम्स नये कलेवर में

 

नेपाल और नेपाल ---------------- आर्यावर्त , भारत , हिन्द , हिन्दुस्तान या इंडिया कुछ भी नाम लें परन्तु इस भूभाग से अधिक नेपाल में भारतीय संस्कृति और संस्कृत का अधिक विकास हुआ जब तक नेपाल चीन और पाकिस्तान की हस्तक्षेप की जद में न आ गया । नेपाल में ऐसा होने के कारण हैं जिनमें सबसे बड़ा आर्थिक है । चीन, पाकिस्तान ने जहाँ स्पष्ट रूप से नेपाल को मदद पहुँचाई वहीं यहाँ के युवकों और सत्ता विरोधी तत्वों सेन केन प्रकारेण लाभ पहुँचाना भी उद्देश्य रहा ।भारत ने गंभीरता से नहीं लिया । एक मात्र हिन्दू राष्ट्र की उपेक्षा भारतीय मानसिकता रही है ।हम हर चीज़ को स्वत: मान लेते रहे अपने पक्ष में ।हमने उनकी सज्जनता , सीधेपन पर तब तक चुटकुले बनाना बन्द नहीं किये जब तक वे हमसे स्थाई रूप से नाराज़ नहीं हो गये । नेपाल की विशेषता को भारत उसकी कमज़ोरी मानता रहा, यही हमारी और हमारी विदेश नीति की असफलता है । नेपाल का साम्यवादियो के हाथों जाना पुनःभारत विरोधी घटनाक्रम हुआ ,परन्तु हम नहीं चेतें ।तत्कालीन कांग्रेस सरकारों ने नेपाल पर ध्यान देना अधिक उचित नहीं समझा । आज चीन का प्रभाव वहाँ सर्वाधिक है जिसे भारत की नई सरकार को संतुलित करना होगा । ।भूटान के बाद मोदी जी को अपनी प्राथमिकता वाला राष्ट्र नेपाल को बनान होगा । राज कुमार सचान होरी वरिष्ठ साहित्यकार , राष्ट्रीय अध्यक्ष ---बदलता भारत सम्पादक -- पटेल टाइम्स Horibadaltabharat.blogspot.com ,PatelTimes .blogspot.com

नेपाल और नेपाल
----------------
          आर्यावर्त , भारत , हिन्द , हिन्दुस्तान या इंडिया कुछ भी नाम लें परन्तु इस भूभाग से अधिक नेपाल में भारतीय संस्कृति और संस्कृत का अधिक विकास हुआ जब तक नेपाल चीन और पाकिस्तान की हस्तक्षेप की जद में न आ गया ।
               नेपाल में ऐसा होने के कारण हैं जिनमें सबसे बड़ा आर्थिक है । चीन, पाकिस्तान ने जहाँ स्पष्ट रूप से नेपाल को मदद पहुँचाई वहीं यहाँ के युवकों और सत्ता विरोधी तत्वों सेन केन प्रकारेण लाभ पहुँचाना भी उद्देश्य रहा ।भारत ने गंभीरता से नहीं लिया ।
           एक मात्र हिन्दू राष्ट्र की उपेक्षा भारतीय मानसिकता रही है ।हम हर चीज़ को स्वत: मान लेते रहे अपने पक्ष में ।हमने उनकी सज्जनता , सीधेपन पर तब तक चुटकुले बनाना बन्द नहीं किये जब तक वे हमसे स्थाई रूप से नाराज़ नहीं हो गये  । नेपाल की विशेषता को भारत उसकी कमज़ोरी मानता रहा, यही हमारी और हमारी विदेश नीति की असफलता है ।
              नेपाल का साम्यवादियो के हाथों जाना पुनःभारत विरोधी घटनाक्रम हुआ ,परन्तु हम नहीं चेतें ।तत्कालीन कांग्रेस सरकारों ने नेपाल पर ध्यान देना अधिक उचित नहीं समझा । आज चीन का प्रभाव वहाँ सर्वाधिक है जिसे भारत की नई सरकार को संतुलित करना होगा । ।भूटान के बाद मोदी जी को अपनी प्राथमिकता वाला राष्ट्र नेपाल को बनान होगा ।
           राज कुमार सचान होरी
वरिष्ठ साहित्यकार , राष्ट्रीय अध्यक्ष ---बदलता भारत
सम्पादक -- पटेल टाइम्स
 Horibadaltabharat.blogspot.com ,PatelTimes .blogspot.com  

एक शेर ------

एक शेर ------
आइये स्वागत करें हम बादलों का इस तरह ,
आँसू ख़ुशी के उनकी आँखों ,झराझर झरने लगें ।


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नेपाल और नेपाल

नेपाल और नेपाल
----------------
आर्यावर्त , भारत , हिन्द , हिन्दुस्तान या इंडिया कुछ भी नाम लें परन्तु इस भूभाग से अधिक नेपाल में भारतीय संस्कृति और संस्कृत का अधिक विकास हुआ जब तक नेपाल चीन और पाकिस्तान की हस्तक्षेप की जद में न आ गया ।
नेपाल में ऐसा होने के कारण हैं जिनमें सबसे बड़ा आर्थिक है । चीन, पाकिस्तान ने जहाँ स्पष्ट रूप से नेपाल को मदद पहुँचाई वहीं यहाँ के युवकों और सत्ता विरोधी तत्वों सेन केन प्रकारेण लाभ पहुँचाना भी उद्देश्य रहा ।भारत ने गंभीरता से नहीं लिया ।
एक मात्र हिन्दू राष्ट्र की उपेक्षा भारतीय मानसिकता रही है ।हम हर चीज़ को स्वत: मान लेते रहे अपने पक्ष में ।हमने उनकी सज्जनता , सीधेपन पर तब तक चुटकुले बनाना बन्द नहीं किये जब तक वे हमसे स्थाई रूप से नाराज़ नहीं हो गये । नेपाल की विशेषता को भारत उसकी कमज़ोरी मानता रहा, यही हमारी और हमारी विदेश नीति की असफलता है ।
नेपाल का साम्यवादियो के हाथों जाना पुनःभारत विरोधी घटनाक्रम हुआ ,परन्तु हम नहीं चेतें ।तत्कालीन कांग्रेस सरकारों ने नेपाल पर ध्यान देना अधिक उचित नहीं समझा । आज चीन का प्रभाव वहाँ सर्वाधिक है जिसे भारत की नई सरकार को संतुलित करना होगा । ।भूटान के बाद मोदी जी को अपनी प्राथमिकता वाला राष्ट्र नेपाल को बनान होगा ।
राज कुमार सचान होरी
वरिष्ठ साहित्यकार , राष्ट्रीय अध्यक्ष ---बदलता भारत
सम्पादक -- पटेल टाइम्स
Horibadaltabharat.blogspot.com ,PatelTimes .blogspot.com


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मंगलवार, 17 जून 2014

Fwd: बदलता भारत



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From:           बदलता भारत{INDIA CHANGES} <noreply@blogger.com>
Date: 31 May 2014 6:20:15 pm IST
To: horirajkumar@gmail.com
Subject: बदलता भारत

बदलता भारत{INDIA CHANGES}

बदलता भारत


बौद्धिक प्रकोष्ठ

Posted: 31 May 2014 03:56 AM PDT

बौद्धिक प्रकोष्ठ
@@@@@@@
भूमिका
------------
देश में बहुसंख्यक वर्ग कैसे पिछड़ा वर्ग और दलित की श्रेणी में आ गया ?? क्या उत्तर है ? या हम पूछें कि देश की इतनी भारी जनसंख्या लगभग 80% से 90% तक दौड़ में पिछड़ कैसे गयी और स्वतन्त्रता के इतने वर्षों बाद भी पिछड़ी और दलित है ??!! इनके अनेक उत्तर आप देते चले आये हैं और देते रहेंगे । समग्र उत्तरों में 99% केवल इसके लिये अगड़ों को उत्तरदायी मानने के होंगे और पिछड़ोंतथा दलितों द्वारा पानी पी पी कर अगड़ों को कोसने से सम्बन्धित होंगे । मैं नहीं कहता कि दोषी और उत्तरदायी लोगों को बेनकाब न किया जाय । करिये अवश्य करिये । ग़लत नीतियों का विरोध हमेशा होना ही चाहिये । समानता की माँग आवश्यक है ।
आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में दो वर्ग सदा से रहे हैं ----एक --शोषक वर्ग और द्वितीय --शोषित वर्ग । प्रकृति का दस्तूर है कि शोषक सदा अपनी सत्ता को बढ़ता है और शोषित लगातार उसका विरोध करता है और ताजीवन छटपटाता है । इसके लिये शोषित हमेशा एक होने की बात करता है ,एकता के कार्यक्रम और आन्दोलन चलाता है । पर गंभीर चिन्तन की आवश्यकता है कि क्यों लगातार शोषित वर्गों को वह सफलता नहीं मिलती जिसकी उसे अपेक्षा रही है ? क्यों आज भी इन वर्गों की उन्नति के आँकड़े भयावह हैं ?? फिर हम ऊपर वालों को दोष देने बैठ जायेंगे और यही हम सदियों से करते आये हैं । कभी हम एकलव्य , कभी शम्बूक की कथायें सुनायेंगे । कभी सरदार पटेल जैसे अनेक नाम लेंगे जो अन्याय का शिकार हुये । हम मानते हैं यह सब सही है । इस देश में जातिप्रथा इतनी जबरदस्त है कि हर जाति अपने लिये जीती है और अपनों का समर्थन करती है । यह सत्य नहीं है कि ऐसा सिर्फ़ अगड़ी जातियाँ करती हैं बल्कि पिछड़े और दलित भी अवसर मिलने पर यही करते हैं ।
पिछड़ों और दलितों के इतने संगठन हैं कि आप गिन नहीं पायेंगे । आखिर उनको समुचित परिणाम क्यों नहीं मिलता ?? आइये इसको समझने के लिये हम एक उदाहरण लें ----एक व्यक्ति है उसे टीबी (तपेदिक) है । पहले तो बीमारी का निदान आवश्यक है diagnosis होना चाहिये । इन समाजों में अनेक डा. ऐसे हैं जिन्हें बीमारी का पता ही नहीं और तुर्रा यह कि वे समाज के बहुत बड़े डाक्टर हैं । बीमारी कुछ और इलाज कुछ । बीमारी ठीक कैसे होगी ? दूसरी संख्या उन लोंगो की है जो बीमारी तो जान गये हैं पर बजाय समुचित इलाज करने के बीमारी के लिये दूसरों को दोष देते हैं, बतायेंगे किन किन के कारण बीमारी हुई ? दूसरों का कितना दोष है ? बैक्टीरिया का कितना दोष है ? किस्सा यह कि उनका समय इन्हीं विरोधों और चिन्ताओं में चला जाता है --बीमार और बीमार होता जाता है । मरीज़ को समय से जो दवाइयाँ मिलनी चाहिये वे नहीं मिल पातीं और वह लगातार मरणासन्न होता जाता है ।
मेरा मानना है कि मरीज़ का समुचित इलाज होना चाहिये जो कारगर भी हो । टीबी की समयबद्ध दवायें चलें और मरीज़ का पोषण किया जाय , उसे पौष्टिक भोजन दिया जाय तो निश्चित ही वह एक दिन चंगा हो जायेगा ।आइये हम मर्ज को पहले पहचानें फिर उसका इलाज करंे । टीबी है तो टीबी का इलाज , कैंसर है तो कैंसर का इलाज ।
आयें , विचारें हम पहले अपने को बीमार मानें । बीमारों को एकत्रित कर कभी सफलता नहीं मिलेगी चाहे आप बहुसंख्यक हों , हैं तो आप बीमार ही और वह भी सदियों से ।आप की बीमारी वास्तव में है क्या ?? सत्ता की भागीदारी के लिये पहले तो हृष्ट पुष्ट बनना पड़ेगा । आप से ही पूछता हूं -कमज़ोरों की सेना बनायी जाय भले ही वह भारी संख्या में हो फिर भी वह पराजित हो जायेगी और लगातार पराजित होती रहेगी । जैसा कि हम देखते रहे हैं ।हम पिछडे़ हैं यह बीमारी है , दलित हैं हैं - यह बीमारी है । यहाँ मैं एक बात और स्पष्ट कर दूं कि आर्थिक पिछड़ेपन से अधिक बौद्धिक , मानसिक पिछड़ापन है । आरक्षण का उपाय संविधान में किया गया पर उससे आंशिक सफलता ही मिली । शैक्षिक और बौद्धिक पिछड़ेपन के कारण आज भी पद खाली के खाली रह जाते हैं । हम कुछ हद तक शिक्षित होते हैं पर बौद्धिक नहीं होते , कुछ अपवाद छोड़ कर ।
मैं फिर कुछ प्रश्न करता हूं --इन वर्गों में कितने लेखक हैं ? कितने पत्रकार हैं? कितने कवि हैं? कितने कहानीकार ? कितने उपन्यासकार? कितने कलाकार ? कितने गायक? कितने धर्माचार्य ? या मैं दूसरी तरह से पूछूं कितने चाणक्य ? कितने वशिष्ठ ? कितने बुद्ध ? कितने दयानन्द ? कितने विवेकानन्द? या पूछूं मन्दिरों में आपके कितने पुजारी हैं? कितने शादी विवाह और अन्य धार्मिक कार्य कराने वाले?
क्या आपके परिवारों , आपके संगठनों ने इन क्षेत्रों में भागीदारी के कार्यक्रम चलाये ? चलाये तो कितने पत्रकार, लेखक , कवि आदि आदि पैदा किये? आप कहेंगे ये पैदा नहीं किये जाते , ये जन्मजात होते हैं । मान भी लें तो क्या आपने और आपके संगठनों ने वातावरण दिया कि जिससे इन क्षेत्रों में प्रतिभा निखरती ? होता यह आया है कि इन क्षेत्रों में आपके बीच कोई काम करता है तो उसे कभी सम्मान नहीं देंगे बढ़ावा देना तो दूर । आप बाल्मीकि का उत्तराधिकारी नहीं पैदा कर पाये । अम्बेडकर ने कहा शिक्षित बनो --हमने उनकी मूर्तियाँ लगा दीं और मस्त हो गये अपने में । पहले भी हम यह कर चुके हैं --बुद्ध की शिक्षा मानने के बजाय बना दी उनकी भी मूर्तियाँ जो मूर्ति पूजा के ही विरोधी थे ।
हम क्या करें?? व्यक्ति के रूप में आप अपने परिवार , सगे सम्बन्धियों में चिन्हित करें जिन्हें थोड़ी भी रुचि हो इन क्षेत्रों में । संगठनों के रूप में अपने अपने समाजों में चिन्हित करें उन लोगों को जो या तो रुचि रखते हों या कुछ काम कर रहे हों , फिर उन्हें बढ़ावा दें और उनको आर्थिक सहायता दें ताकि उनके कृतित्व का प्रकाशन हो सके ।
एक परिकल्पना दूँगा --आप की आबादी मान लें 100 करोड़ है तो अगर एक प्रतिशत यानी एक करोड़ लेखक , कवि हो जायें और वे एक साल में एक किताब भी अपने मनचाहे विषय पर लिखें तो हर वर्ष एक करोड़ किताबें !! और निश्चित वे आपके साथ न्याय करेंगी । पाँच वर्षों में पाँच करोड़ पुस्तकें तो देश में बौद्धिक क्रांति ले आयेंगी । इन में से कुछ लाख पत्रकार हों तो सम्भव है आपके साथ कोई अन्याय कर सके । कुछ लाख धर्माचार्य हों, कलाकार हों तो कौन सी क्रांति हो जायेगी कभी सोचा है ?
विश्व गवाह है ----बौद्धिक क्रान्तियों के बाद ही राजनैतिक क्रांतियां होती हैं । अगर ऐसा हुआ तो राजनैतिक भागीदारी को कौन रोक पायेगा ? फिर सत्ता तो आपके पास ही रहेगी बौद्धिक भी और राजनैतिक भी । लेकिन फिर स्मरण करा दूं बौद्धिक सत्ता चाभी है राजनैतिक सत्ता पाने के लिये । दूर क्यों जायें दक्षिण भारत में यह बहुत पहले हो चुका है -- रामास्वामी नायकरों और ज्योति फुलों द्वारा । अम्बेडकर भी बाद में राजनैतिक थे पहले थे लेखक , विचारक 14 पुस्तकों के लेखक । तभी उनका लोहा गांधी , पटेल ,नेहरू सब मानते थे । वे इन्हीं गुणों और विशेषताओं के कारण संविधान की ड्राफ्ट कमेटी के अध्यक्ष बनाये गये । उनकी योग्यता को राष्ट्र ने नमन किया । आइये हम कुछ कार्यक्रम चलायें और एक क्रांति के संवाहक बनें ।
मुख्य कार्यक्रम --------
१--संगठनों में विभिन्न बौद्धिक और कला के क्षेत्रों में कार्य करने वालों या रुचि रखने वालों को चिन्हित करें ।प्रथक प्रथक नाम पतों के साथ अभिलेख बनायें ।
२-- सम्मेलनों और कार्यक्रमों में उन्हें सम्मानित करें ।
३-- उनकी कला के विकास के लिये और उनकी रचित पुस्तकों के प्रकाशन के लिये उन्हे आर्थिक सहयोग दें --समाज के धनी व्यक्ति आगे आयें ।
४-- लगातार --साप्ताहिक , मासिक समीक्षा करें कि इन क्षेत्रों में कितनी प्रगति हुई ।
५-- पत्र पत्रिकाओं की संख्या बढ़ायें और उन्हे लेखकीय , आर्थिक सहयोग दें ।
६-- रचनाकारों को पुस्तकें लिखने के लक्ष्य दें और उनके प्रकाशन की व्यवस्था करायें ।
७--रचनाकारों के प्रथक से भी संगठन बनायें और उनके सम्मेलन करें ।
राज कुमार सचान "होरी"- अध्यक्ष - बौद्धिक प्रकोष्ठ
राष्ट्रीय अध्यक्ष -बदलता भारत
www.badaltabharat.com , horibadaltabharat.blogspot.com , Facebook.com/Rajkumarsachanhori
Email rajkumarsachanhori@gmail.com , horirajkumarsachan@gmail.com


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Fwd: Raj Kumar Sachan Hori BJP leader and Rashtriya Adhyaksha BADALTA BHARAT with Anupriya Patel MP Mirzapur and General Secretary Apnadal .

Posted: 30 May 2014 10:34 PM PDT



---------- Forwarded message ----------
From: Raj Kumar Sachan HORI <rajkumarsachanhori@gmail.com>
Date: Wednesday, May 28, 2014
Subject: PH
To: Rajkumar sachan <horirajkumar@gmail.com>



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Posted: 30 May 2014 04:29 PM PDT

 
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सोमवार, 16 जून 2014

राजनीति में नीति किधर? मैं ढूँढ रहा हूं युग युग मे

राजनीति में नीति किधर? मैं ढूँढ रहा हूं युग युग में ।
सतयुग ढूँढा, ढूंढा त्रेता ,ढूँढा द्वापर कलियुग में ।।
---------------------------------------------
हरिश्चंद्र का राजपाट भी , राजनीति ने छीना था ,
और मंथरा राजनीति ने , राम राज क्या कीन्हा था ?
बालि और रावण वध में भी नीति ,अनीति कहाँ तक थीं?
अग्निपरीक्षित हो कर भी क्या , सीता को विष पीना था ??

क्या सतयुग ,क्या त्रेता में भी राजनीति थी पग पग में ?
राजनीति में नीति किधर ? मैं ढूँढ रहा हूँ युग युग में ।।
००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
द्वापर का तो अंश अंश भी राजनीति में पगा हुआ ।
कथा महाभारत में बोलो भ्रात भ्रात क्या सगा हुआ ?
विदुर नीति या नीति युधिष्ठिर क्या केवल आदर्श न थी,
क्या आदर्श? नहीं दिखता है , राजनीति से ठगा हुआ ?


कृष्ण काल में राजनीति ही व्याप्त हुई थी नग नग में
राजनीति में नीति किधर ? मैं ढूँढ रहा हूँ युग युग में ।
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
राज कुमार सचान होरी









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सोमवार, 9 जून 2014

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गुरुवार, 5 जून 2014

बदलता भारत

बदलता भारत
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
{साईं होरी ट्रस्ट (रजि.)द्वारा संचालित }
63, नीति खण्ड ।।। इंदिरापुरम ,ग़ाज़ियाबाद
प्रदेश कार्यालय (उ . प्र .) 11 बसन्त विहार ,मानस सिटी रोड ,इंदिरानगर ,लखनऊ ।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
पुस्तकालय , वाचनालय ,सभागार योजना
---------------------------------------
भूमिका
......
हमारा देश प्राचीनतम संस्कृति का देश है । विश्व में सर्वाधिक बोली,भाषायें संस्कृतियाँ इसी देश भारत में मिलती हैं । विकास की यात्रा में यह परम आवश्यक है कि हम अपनी पहचान , अपना इतिहास सुरक्षित रखें । किसी ने ठीक ही कहा है --------
'यूनान मिश्र रोमां सब मिट गये जहाँ से ,
कुछ हस्ती है हमारी , मिटती नहीं जहाँ से ।'
प्राचीन भारत में भी नालंदा ,तक्षशिला जैसे शिक्षा केन्द्र अपने विश्व प्रसिद्ध पुस्तकालयों के लिये जाने जाते थे जहाँ विदेशी भारी संख्या में विद्याध्ययन के लिये आते थे । हमारा देश विश्व गुरू था ।दुनियाँ में सर्वाधिक पुस्तकें हम प्रकाशित करते थे ,परन्तु कालान्तर में विदेशी आक्रमणों से स्थितियां निरन्तर खराब होती गईं और आज हम पिछड़ गये ।
आइये हम संस्कृति और इतिहास के संरक्षण के लिये देश में प्रभावी अभियान चलायें ।" बदलता भारत " ने आरम्भ की है -----
" पुस्तकालय , वाचनालय ,सभागार योजना"
इस योजना से देश की संस्कृति ,इतिहास के संरक्षण के साथ साथ शिक्षा और ज्ञान के प्रसार तथा विकास और रोजगार में आशातीत लाभ होगा ।
-------------------------
योजना क्या है ?
------------------
देश के प्रत्येक जनपद में कम से कम एक नगरपालिका ,नगरनिगम में उस जनपद के सबसे बड़े साहित्यकार या स्वतंत्रता सेनानी के नाम से एक "पुस्तकालय ,वाचनालय,सभागार "का निर्माण स्थानीय निकाय स्वयं अपने संसाधनों , प्रदेश और केन्द्र से प्राप्त धनराशियों तथा सांसद और विधायक निधियों से पूर्ण कराये जिसमें तीन कक्ष हों ---( 1) पुस्तकालय (2) वाचनालय (3) सभागार ।
पुस्तकालय में साहित्य ,विज्ञान ,अर्थशास्त्र , इतिहास, समाजशास्त्र ,धर्म ,दर्शन ,राजनीतिशास्त्र ,भूगोल आदि आदि के साथ इंजीनियरिंग तथा तकनीकी विषयों और मेडिकल व कम्पटीशन की पुस्तकें , पत्र ,पत्रिकायें भी उपलब्ध रहें जिससे क्षेत्रीय विद्यार्थीगण लाभ उठा सकें ।कोचिंग के स्थान पर प्रतिभावान विद्यार्थी स्वयं अध्ययन करते हैं बसर्ते उन्हें पुस्तकें उपलब्ध हों ।
पुस्तकालय के साथ एक कक्ष वाचनालय हो जिसमें बैठ कर विद्यार्थीगण और नागरिक पुस्तकें और पत्र,पत्रिकायें पढ़ सकें । इन्हीं दो कक्षों के साथ एक बड़ा सभागार होना चाहिये जिसका बहुद्देशीय प्रयोग किया जा सके । सभागार नगर की सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र बन सके इस लिये यह कम से कम 100 फ़ीट लम्बा और 60 फ़ीट चौड़ा हो । इस सभागार में क्षेत्र के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ,साहित्यकारों तथा अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों के चित्र संक्षिप्त विवरण के साथ लगाये जांय ।
"पुस्तकालय,वाचनालय ,सभागार " जहाँ एक ओर समस्त सांस्कृतिक , साहित्यिक ,बौद्धिक ,वैचारिक गतिविधियों का केन्द्र बनें वहीं दूसरी ओर वह बनें क्षेत्र के समस्त इतिहास को समेटे एक धरोहर । एक ऐतिहासिक धरोहर ।
---------------------------------------------------------------------------------------------
अभियान
..............
"बदलता भारत "का यह शैक्षिक, साहित्यिक और ऐतिहासिक अभियान इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष राज कुमार सचान होरी द्वारा अपने गृह नगर घाटमपुर जनपद कानपुर नगर में अपने साथी कवियों , शायरों, बुद्धिजीवी मित्रों और क्षेत्रीय नागरिकों के साथ 26 जनवरी 2014. से आरम्भ किया गया है ।
घाटमपुर क्षेत्र के गाँव टिकवांपुर में जन्मे महाकवि भूषण ने क्षत्रपति शिवा जी और महाराजा क्षत्रशाल पर वीर रस में कवितायें कीं और वह राष्ट्र कवि के रूप में जाने गये । देश में ,महाकवि भूषण नें घाटमपुर का नाम रोशन किया था ।
नगर पालिका द्वारा अपेक्षित कार्यवाही न किये जाने के कारण बदलता भारत संगठन द्वारा घाटमपुर तहसील के प्रांगण में 28 मई 14 को एक दिवसीय धरने का आयोजन किया गया जिसमें दूर दूर के जनपदों से प्रसिद्ध कवि ,शायर आकर धरने पर दिन भर बैठे । जिसमें बीच बीच में काव्य पाठ और भाषण चलते रहे ।
धरने की नोटिस और घोषणा का इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि प्रस्तावित धरने के दो दिन पूर्व ही नगर पालिका द्वारा बोर्ड की बैठक 26 मई 14 में राज कुमार सचान "होरी"द्वारा प्रस्तुत माँग को मानते हुये "महाकवि भूषण पुस्तकालय,वाचनालय ,सभागार "के निर्माण का प्रस्ताव पारित कर दिया गया और 27 मई को इस आशय का समाचार भी प्रकािशत हुआ ।
साहित्यकारों का प्रभाव समाज और देश ने महसूस किया । 28 मई का पूर्व प्रस्तावित धरना तो किया गया परन्तु नगरपालिका को धन्यवाद देते हुये और यह चेतावनी देते हुये कि समयबद्ध ढंग से कार्य पूर्ण कराया जाय , धरना सायं 5 बजे समाप्त किया गया ।कन्नौज ,रायबरेली , मैनपुरी से आये कवियों , शायरों ने अपने जनपदों में इसी तरह की माँग के लिये अपने यहाँ पर धरने आयोजितकरने के प्रस्ताव रखे ,जिनको पारित किया गया ।
सम्पूर्ण देश में इस तरह का अभियान " बदलता भारत " द्वारा चलाये जाने का निर्णय लिया गया ।
राज कुमार सचान "होरी"
वरिष्ठ साहित्यकार
राष्ट्रीय अध्यक्ष - बदलता भारत
email indiachanges2012@gmail.com, horibadaltabharat.blogspot.com , rajkumarsachanhori@ Facebook.com , horionline.blogspot.com






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सोमवार, 2 जून 2014

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