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गुरुवार, 12 मई 2016

Hori KAHIN

होरी कहिन 

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राजनीति के व्यूह में , फँसा राष्ट्र अभिमन्यु

नेता दुर्योधन सदृश , करें अनीति जघन्य ।।

करें अनीति जघन्य , महाभारत  रचते   हैं

युद्धों में बस काग,गिद्ध ,निशिचर बचते हैं।।

होरी  अब तो  बन्द  करो , ओछा अनीति

नहीं, ग़ुलामी  जाये  , इस राजनीति ।।

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एकत्रित    होने लगे , कालोनी   के  चोर

आपस में मिल बाँट कर, खायें करते शोर ।।

खायें   करते  शोर ,  सभी   मौसेरे   भाई

ख़ुश हैं मोटी मोटी पा , घनघोर   कमाई ।।

साहूकार अकेले होकर, दिखते हैं असहाय

चोर तिजोरी लूट कर ,गये सभी कुछ खाय।।

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उत भी जंगल राज है , इत भी जंगल राज

होरी दिन   कैसे कहो , जनता देखे आज ।।

जनता   देखे आज , दुशासन  सीना जोरी

टूट  गई  है आज ,  सुशासन  वाली डोरी ।।

ख़ुश  हैं चारों  ओर   ,भेड़िये ,चीते   आज

होरी  फैला    देश में , देखो   जंगल राज ।।

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राज कुमार सचान होरी 





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