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सोमवार, 18 अप्रैल 2016

Hori KAHIN

होरी कहिन 

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जभी सीय  ने था किया ,लक्ष्मण रेखा पार

राम राज रोया  बहुत,  दशकन्धर  के द्वार ।।

दशकन्धर  के द्वार  ,हुआ था युद्ध  भयानक

राम - दशानन युद्ध ,याद है अभी कथानक ।।

लक्ष्मण  रेखा  पार   करिये  , आप कभी

होरी   निश्चित  युद्ध  पार  हम , करें जभी ।।

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अच्छा  है  डूबें  मरें , सरिता  में मँझधार

क्या जीना बैठे हुये , यूँ ही इस उस पार ।।

यूँ ही इस उस पार , बैठ कर मक्खी मारें

रोज क़ीमती  समय  ,व्यर्थ में यूँ ही टारें ।।

तभी  ज़िन्दगी  भर खाते ,गच्चे पर गच्चा

होरी  चलते  रहना  ही , जीवन में अच्छा ।।

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होरी  मेरे  देश  में , जाति  धर्म  के  रोग 

आपस में बिखरे हुये ,हम भारत के लोग ।।

हम भारत के लोग , सदा ख़ुद से टकरायें

भाई  बन्धु लगें  दुश्मन , तो दुश्मन  भायें ।।

मीर  जाफरों , जयचन्दों  के  अब  भी घर

भारत माता दु:खी , डालिये नज़र जिधर ।।

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राजकुमार सचान होरी 

www.horionline.blogspot.com




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