{व्यंग्य} फेस बुक के फेस(भाग २) ....[होरी खड़ा बाज़ार में ]
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आदरणीय मिश्र जी को फेस लटकाए सब्जी मण्डी में छोड़ 'होरी' आगे बढ़ गया |तभी जैसे ही आगे बढ़ा , और बाज़ार में लेडिस /जेंट्स ब्यूटी पार्लर ,बाडी बिल्डिंग की मार्केट आरंभ हुयी , एक जेंट्स पार्लर में मसाज कराते और एक सामने के लेडिस ब्यूटी पार्लर में किसी को रस भरी आँखों से घूरते , ताकते , एक चिर युवा , मर्दानगी से भरपूर परम श्रधेय श्री हरिपाल सिंह जी दिखाई दिए | यही कोई ८६ वर्ष के | पूरे जवान | तन ,मन, दिल ,दिमाग से पूरे मेंटेन |
मैंने सोचा बात करलूं | पहले तो पहचान ही नहीं आये , बालों में खिजाब , दाढ़ी में खिजाब के साथ साथ मूंछें साफ़ | भौहों , बरौनियों में भी खिजाब | मैं भी यह मनोहारी रूप देख मंद , मंद मुश्काया फिर पूछ बैठा ...'माज़रा क्या है ? सब खैरियत तो है ? यह श्रंगार रसराज आप पर सवार ??!!आप का यह हाल किसने बनाया ?वह कौन खुशनसीब है जिसने वीर रस के कवि को श्रंगार में आकंठ डुबोया ? मैं भी तो जानूं |वह चौसंठ कलाओं में मुश्कराए , सोलहों श्रंगार की भंगिमा बनाते हुए बोले ...'सब फेस बुक का कमाल है , इन्टरनेट का जादू है |
'होरी' आपने ही कहा था ...क्या कम्पूटर में ताश की पत्ती खेलते रहते हो , इन्टरनेट में जाओ ,फेसबुक में आओ | दुनिया कहाँ से कहाँ चली गयी और आप ताश खेल रहे हैं !!!!! [क्रमशः]
sundar
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