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रविवार, 17 मई 2015

व्यंग्य

              व्यंग्य 
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                            देश की चिन्ता 
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होरी जी आजकल देश की चिन्ता को अपनी चिन्ता समझ दुबले हुये जा रहे हैं ।देश की चिन्ता और अपनी चिन्ता में बस यही फ़र्क़ है कि अपनी चिन्ता में वह कुछ करता है , कम से कम हाथ पैर तो मारता ही है; पर देश की चिन्ता में वह कर कुछ नहीं पाता बस दुबलाता रहता है । दुबले होने में भी एक विशेषता है -- कमज़ोरी सी बनी रहती है ,भूख नहीं लगती , भ्रम के स्थायीभाव में रहता है ,दिन भर और ख़ासकर रात में देश देश चिल्लाता है पर खाता ख़ूब है । शायद देश के टेंशन में खाता है जो भी मिल जाय , जहाँ भी मिल जाय ।मेरे भी आजकल यही लक्षण हो रहे हैं । शायद आप भी इसी बीमारी के शिकार तो नहीं हो गये ? 
                  देश का कोई  भी क्षेत्र हो वहाँ प्रतिभाओं का घोर अकाल पड़ गया है । देश की सरकार हो चाहे प्रदेश की सरकारें सब परेशान हैं उनके यहाँ प्रतिभाओं का टोटा पड़ गया है । उद्योग हो , व्यापार हो ,राजनीति हो ,शिक्षा हो , खेलकूद हो सब के सब परेशान । सब जगह प्रतिभाओं का अकाल , भीषण अकाल । मैं और मेरे जैसे लोग इसी चिन्ता में परेशान । अब सोचा कि आप से अपने देश की चिन्ता , अपनी चिन्ता को साझा करलूं , शायद कोई रास्ता निकल आये । बात यह है कि सारी प्रतिभायें फ़ेसबुक में अपनी सारी की सारी प्रतिभा लगा रहे हैं । चाहे कोई भी विन्दु हो , विषय हो सबका हल फ़ेसबुक में मिल जायेगा । अब जब सारे प्रतिभावान यहाँ हैं तो बाक़ी क्षेत्रों में तो प्रतिभाओं का टोटा होगा ही । मैं तो इसी चिन्ता में दुबला हुआ जा रहा हूँ आप ही कोई दवा बतायें , शायद मैं और मेरा देश मरने से बच जाय ।
                                  राजकुमार सचान होरी
                       राष्ट्रीय अध्यक्ष - बदलता भारत ।

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