होरी में ही मदमस्त आप जीलीजिये,
एक दिन आपके लिये है बना रंग का ।
शेष वर्ष नून तेल रोटी को तलाशिये ,
भूल जाइयेगा। नशा कहाँ गया भंग का ।
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बिन देखे औ बिन छुये ,उन संग खेलें यार ।
नव विधान में चूक पर , मिलती कारागार ।।
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होरी में हुरिया गये ,कविवर राजकुमार ।
गोपी के पीछे पड़े ,पहुँचे कारागार ।।
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राज कुमार सचान होरी
rajkumarsachanhori @gmail.com
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