गीत -"रूपसि ,रूप तुम्हारा००००००"
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
------ राज कुमार सचान "होरी"
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रूपसि, रूप तुम्हारा कोई नहीं निहारेगा ।
पीछे से कोई , हौले से नहीं पुकारेगा ।।
(1)
नव विधान के व्यूहपाश में , यौवन बिलखेगा ,
नारी का सौन्दर्य प्रशंसा के हित तरसेगा ।
कारागारों के कल्पित भय से भयभीत हुआ ,
चातक कोई कभी चाँद को नहीं निहारेगा ।
पीछे से कोई हौले से ०००००००००
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(2)
अब मजनू के लिये सदा ही लैला तरसेगी ,
बिना मेघ केबिजली भी अब किस पर तड़पेगी ?
पपिहा पिउ पिउ बोलेगा भी कैसे नये विधान में,
कोई फ़रहाद कभी सीरी को नहीं पुकारेगा ।
रूपसि, रूप तुम्हारा००००००००००००००
(3)
नैनों सैनों से न प्रेम संदेश लिखेंगे हम ,
प्यार मोहब्बत की दुनियाँ में कहाँ दिखेंगे हम ।
आदम -हौव्वा , मनु-सतरूपा डरे डरे होंगे ,
गीतकार कम्पायमान श्रंगार बिसारेगा ।
रूपसि, रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००
(4)
अलंकार श्रंगार और रस रोयेंगे घर घर ,
अब बसंत पतझड़ सा होगा झर झर ग्राम नगर ।
सूरदास पुरुषों के आगे मन मारे सौन्दर्य ,
बुझा-बुझा सा प्यासा -प्यासा केश सवांरेगा ।
रूपसि, रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००
(5)
व्यर्थ -व्यर्थ श्रंगार प्रसाधन ,सजना और संवरना ,
अलंकार नख शिख कपोल कटि भृकुटी और सिहरना ।
रूप निरर्थक , नहीं अगर , दीदार करे कोई ,
कामदेव के बिना तुम्हें रति ! कौन निखारेगा ?
रूपसि ,रूप तुम्हारा०००००००००००००००००००००
(6)
नव विधान में नव समाज अनजाना सा होगा ,
तापहीन निस्तेज़ प्रेम बचकाना सा होगा ।
प्रेम मोहब्बत शब्दकोश में ही रह जायेंगे ,
अब न प्रेम के तड़के से कोइ दाल बघारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००००
(7)
ब्वायफ्रेंड तो होंगे लेकिन सहमें डरे हुये ,
"श्रंगार" नहीं, अब "शांत" और "करुणा"से भरे हुये ।
वैलेंटाइन डे अब होंगे अन्धे मूक बधिर ,
अब न ज्योतिषी जन्म कुंडली प्रेम विचारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००
(8)
युवती देखेगी ,घूरेगी ,छेड़ेगी निश दिन ,
युवक नज़र नीची रख कर छिड़ छिड़ जाये दिन दिन ।
युवती बन दूल्हा छेडे़गी युवक बना दूल्हन ,
अब सुहाग की रात युवक ही सेज बुहारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००००
(9)
नव विधान में वृद्ध नहीं अब आंखें सेंकेंगे ,
यूँ ही बैठे ढोर सदृश अब घर घर रेकेंगे ।
षोडषियां तो भूल जांयगे बुढ़ियों से भी डर डर,
बुडढा अपनी "बूढ़ जवानी" स्वयं सम्हारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००
(10)
बिन देखे, घूरे,बोले ,बिन पीछा किये हुये ,
बिना सैन के प्रेम नैन के प्याले पिये हुये।
प्रेमांकुर कैसे फूटेंगे , प्रेमी हिये जिये ?
प्रेम बीज अब खेत खेत में कौन बिखारेगा ?
रूपसि , रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००
(11)
पुलिस और नारी विमर्श से पुरुष रम्हायेगा,
स्वर्णिम पल कारागारों या कोर्ट बितायेगा ।
जीवन भर नारी से पीड़ित कुंठित लुटा पिटा,
नव विधान से क्षत विक्षत हो स्वर्ग सिधारेगा ।
रूपसि ,रूप तुम्हारा००००००००००००००००००००००००
(12)
नव विधान हे रूपसि ! तेरा , भस्मासुर होगा ,
जीवन में नव छन्द , ताल, लय और न सुर होगा ।
एक दिवस नारी वैरागी सी बन बिहरेगी ,
कोई पुरुष , नहीं नारी के निकट गुज़ारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००००००
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शनिवार, 30 मार्च 2013
बुधवार, 27 मार्च 2013
Fwd: (2) ग्राम सरकार और नगर सरकार ़़़़ 73 वाँ और 74 वाँ संविधान संशोधन लागू कराना ।
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From: indiachanges2013 <indiachanges2013@gmail.com>
Date: 19 February 2013 9:28:26 PM GMT+05:30
To: Rajkumar sachan <horirajkumar@gmail.com>
Cc: "horiindiachanges@gmail.com" <horiindiachanges@gmail.com>, "indiachanges2012@gmail.com" <indiachanges2012@gmail.com>
Subject: Re: (2) ग्राम सरकार और नगर सरकार ़़़़ 73 वाँ और 74 वाँ संविधान संशोधन लागू कराना ।
rajkumarsachanhori@facebook.com
On Monday, December 31, 2012, Rajkumar sachan wrote:(2) ग्राम सरकार और नगर सरकार ़़़़ 73 वाँ और 74 वाँ संविधान संशोधन लागू कराना ।
भारत के जनमानस को ध्यान में रख अपनी जनता के सशक्तीकरण के लिये कभी देश की संसद ने बड़े उत्साह और राष्ट्र के प्रति पूर्ण निष्ठा की पवित्र भावना से गाँवों और नगरों को अपनी सरकार बनाने के लिये 73 वाँ और 74 वाँ संविधान संसोधन करते हुये देश कीजनता को है अधिकार दिया। था ।
आज स्थिति यह हैै इतने महत्वपूर्ण संविधान संसोधन हम अभी तक सम्पूर्ण देश में लागू नहीं कर पाये हैं । जिन प्रदेशोंने इन्हें लागू किया है वहाँ के परिणाम बड़े अच्छे , उत्साहवर्धक रहे हैं । परन्तु कुछ प्रदेश इन्हें अपने अधिकारों में हनन समझकर लागू नहीं कर रहे हैं । जिन प्रदेशों में इन्हें लागू नहीं किया गया उनकी स्थिति विकास की दृष्टि से असन्तोषजनक बनी हुयी है ।
देश की आधी जनता ग़रीबी रेखा के नीचे है ,विकास की दौड़ में अत्यन्त पीछे ।जनता की नियम क़ानून बनानें और संसाधनों के विकास में कोई भागीदारी नहीं है ।जबकि उक्त संसोधनों के पीछे जनता जनार्दन को सशक्त बनाने की भावना थी ।
इंडिया चेंजेज़ ( INDIA CHANGES ) ने इस प्रकरण में देश की नब्ज जानने की कोशिश की हैै़़़़ ़़़देश। के समस्त प्रधान , पंचायतों के प्रतिनिधि , ग्रामीण जनता 73 वाँ संसोधन लागू कराना चाहती है । इसके लिये समय समय पर आंदोलन भी होते रहते हैं । इसी तरह 74 वाँ संसोधन नगर निकायों के जनता के प्रतिनिधि - पार्षद और महापौर तथा नगरीय जनता लागू कराना चाहती है ।
आइए जनभावनाओं के अनुरूप देश की समस्त जनता की भलाई के लिये बिना किसी और विलम्ब के उक्त दोनों संसोधनों को पूर्ण निष्ठा से लागू करें। हम यह भी माँग करते हैं कि संसद एक संसोधन के द्वारा इन्हें स्वैच्छिक के स्थान पर अनिवार्य कर दे। जनता के इतने महत्वपूर्ण अधिकार राज्य सरकारों के भरोसे न छोड़े जाँय ।
जनता के द्वारा जनता की सरकार के लिये भले ही देशव्यापी आंदोलन क्यों न छेड़ना पड़े ।
इंडिया चेंजेज़ ( INDIA CHANGES )
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Fwd: 3/ जनसंख्या नियंत्रण
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From: indiachanges2013 <indiachanges2013@gmail.com>
Date: 19 February 2013 9:29:25 PM GMT+05:30
To: Rajkumar sachan <horirajkumar@gmail.com>
Cc: "indiachanges2012@gmail.com" <indiachanges2012@gmail.com>
Subject: Re: 3/ जनसंख्या नियंत्रण
rajkumarsachanhori@facebook.com
On Wednesday, January 2, 2013, Rajkumar sachan wrote:3/ जनसंख्या नियंत्रण
हमारे देश की जनसंख्या 1901 की जनगणना के अनुसार लगभग 23 करोड़ 80 लाख थी जिसमें वर्तमान पाकिस्तान और बांग्लादेश के भूभाग भी सम्मिलित थे । 2011 की जनगणना के आधार पर भारत वर्ष की जनसंख्या ही एक सौ पच्चीस करोड़ से अधिक है जो पाँच गुना से अधिक है जिसमें वर्तमान पाकिस्तान और बांग्लादेश की जन संख्या सम्मिलित नहीं है । भारत के वर्तमान भूभाग की तुलनात्मक जनसंख्या वृद्धि तो 7 गुना से भी अधिक होगी ।
भारतवर्ष ने स्वतंत्रता के बाद बहुत प्रगति की परन्तु सम्पूर्ण प्रगति जनसंख्या रूपी सुरसा के मुँह में समा गई । जहाँ सकल आय बढ़ी वहीं प्रति व्यक्ति आय में हम पूरे विश्व में पायदान पर हैं । ऐसा क्यों ? उत्तर एकदम स्पष्ट है भारी जनसंख्या वृद्धि । जनसंख्या वृद्ध विकास की नंबर एक शत्रु है ।
जनसंख्या वृद्धि जहाँ विकास की परम दुश्मन है वहीं यह अपराधों की जननी है । एक ऐसा वर्ग विकसित हो जाता है जिसको कोई काम न मिलने पर अपराध की ओर मुड़ जाता है ।उस वर्ग की शिक्षा दीक्षा कम रहती है, अभाव में बचपन बीतता है और वे दूसरों को सुखी संपन्न देखते हैं तभी उनके मन में बदले की भावना , ईर्श्या, विद्वेष तथा भांतिभांति के अपराध पनपने लगते हैं । आज पूरे देश में यही भयानक स्थिति हो रही है बलात्कार , हत्याओं आदि जघन्य अपराधों में दुनियाँ में सर्व श्रेष्ठ । जनसंख्या अधिक होने के कारण अपराधियों की भारी संख्या के सामने पुलिस बल अत्यन्त कम पड़ जाता है और असहाय नज़र आता है ।
माँग और पूर्ति में भारी अंतर से अभाव जन्म लेता है तो अभावों को दूर करने के लिये भी एक बहुत बड़ा वर्ग रिश्वत देने के लिये तैयार रहता है तो दूसरा वर्ग इसका लाभ उठा कर भ्रष्टाचार शुरू कर देता है । भारी जनसंख्या के कारण ही एक ऐसा वर्ग तैयार हो जाता है जो क़ानूनों से ऊपर उठ कर सारे संसाधनों पर कब्जा करने लगता है।
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होरी में ही मदमस्त आप जीलीजिये,
होरी में ही मदमस्त आप जीलीजिये,
एक दिन आपके लिये है बना रंग का ।
शेष वर्ष नून तेल रोटी को तलाशिये ,
भूल जाइयेगा। नशा कहाँ गया भंग का ।
@@@@@@@@@@@@@@@@@
बिन देखे औ बिन छुये ,उन संग खेलें यार ।
नव विधान में चूक पर , मिलती कारागार ।।
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होरी में हुरिया गये ,कविवर राजकुमार ।
गोपी के पीछे पड़े ,पहुँचे कारागार ।।
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राज कुमार सचान होरी
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एक दिन आपके लिये है बना रंग का ।
शेष वर्ष नून तेल रोटी को तलाशिये ,
भूल जाइयेगा। नशा कहाँ गया भंग का ।
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बिन देखे औ बिन छुये ,उन संग खेलें यार ।
नव विधान में चूक पर , मिलती कारागार ।।
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होरी में हुरिया गये ,कविवर राजकुमार ।
गोपी के पीछे पड़े ,पहुँचे कारागार ।।
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