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रविवार, 11 दिसंबर 2011

गांव , गली ,खलिहान (1) राजनीति करते नहीं , पड़े हुए हैं खेत| 'होरी' सत्ता सुख सभी , राजनीति ही देत || (२)नहीं नौकरी कर रहे, और न ही व्यवसाय || वे नेतागीरी करें , और न कोयि उपाय || (३) सौ में हैं निन्यानवे , गाँव ,गली , खलिहान | 'होरी' कुर्मी का कहो , हो कैसे उत्थान || (४) औरों से डरते रहे , पर आपस में युद्ध | दुखी शिवा , सरदार सब , और दुखी हैं बुद्ध || (5) कुर्मी गांवों में रहे , शहरों से अति दूर | भाग्य भरोसे बैठ कर , कुर्मी अति मजबूर || (६) टीक , बांस खेती करें , छोड़ें गेहूं धान | 'होरी' धन दौलत मिले , आगे बढ़ें सचान || राज कुमार सचान 'होरी'

गांव , गली ,खलिहान 
(1) राजनीति करते नहीं  , पड़े हुए हैं खेत|
'होरी' सत्ता सुख सभी , राजनीति ही देत ||
(२)नहीं नौकरी कर रहे, और न ही व्यवसाय ||
वे  नेतागीरी    करें ,    और न   कोयि  उपाय ||
(३) सौ में हैं निन्यानवे , गाँव ,गली , खलिहान |
'होरी'  कुर्मी   का   कहो , हो   कैसे     उत्थान ||
(४) औरों  से डरते  रहे  , पर  आपस में   युद्ध  |
दुखी  शिवा , सरदार सब ,  और  दुखी हैं  बुद्ध ||
(5) कुर्मी   गांवों  में रहे , शहरों   से अति दूर |
भाग्य  भरोसे   बैठ कर , कुर्मी  अति  मजबूर ||
(६) टीक  , बांस   खेती करें , छोड़ें गेहूं  धान |
'होरी'  धन  दौलत  मिले , आगे  बढ़ें  सचान ||
                                                राज कुमार सचान 'होरी'
  

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