प्रिय महोदय ,
प्रकाशनार्थ प्रेषित हैं तीन छंद ---
होरी कहिन
७/१२/१५
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( १)
अपराधी , शैतान या व्यभिचारी बदनाम ।
समाचार में पा रहे , वही पूर्ण स्थान ।।
वही पूर्ण स्थान ,दिलाता चौथा खम्भा ।
कहीं शरीफ़ नाम दिख जाये बड़ा अचम्भा।।
समाचार सब विषमाचार बनाते ये ।
होरी चैन कहाँ है , बहुत डराते ये ।।
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(२)
पत्रकार की ज़िन्दगी , उलझन भरी बयार ।
अन्दर से काँटों भरी , बाहर दिखे बहार ।।
बाहर दिखे बहार ,तोप सी क़लम चलाये ।
चौथे खम्भे की ताक़त ,दिन रात दिखाये ।।
हैं उससे नाराज़ ,विपक्षी और दुखी सरकार ।
जान हथेली में ले डोले , पल पल पत्रकार ।।
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(३)
प्रधान नरेगा का हुआ , चोली दामन साथ ।
गाँव गाँव दिखने लगा , नेता जी का हाथ ।।
नेता जी का हाथ , प्रधानी में दिखता है ।
मदिरालय में डूब ,यहाँ पर सब बिकता है ।।
कौवे सी चालाकी ले , ले बगुले सा ध्यान ।
चुन चुन चुगने आ गये ,अपने पुनः प्रधान ।।
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राज कुमार सचान होरी
७/१२/१५
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