अश्लील साहित्य और शराब पर "हल्ला बोल"
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छोटी बच्चियों से लेकर समाज की हर स्त्री को उपभोग की वस्तु बनाया है हमारे अतिशय शराब और अश्लील साहित्य के मन माने उपयोग ने ।सरकारें अधिक से अधिक आय बढा़ने के लिये शराब की बिक्री बढ़ाती है । आज इंटरनेट के द्वारा घर घर पोर्न सामग्री देखी जा रही है। पोर्न स्टार कहने में झिझक नहीं ।
आइये अभियान चलायें ।शराब और अश्लील ,पोर्न सामग्री के विरुद्ध हल्ला बोल अभियान की आवश्यकता है । जितने भी सोशल नेटवर्क के क्रियाशील साथी हैं वे एक साथ इन दो के खिलाफ़ हल्ला बोलें , और सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि वे स्वयं भी प्रतिज्ञा करें कि इन दोनों से स्वयं को दूर रखेंगे । निश्चय ही परिवर्तन आयेगा । भारत बदलेगा । India will change.
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गुरुवार, 25 अप्रैल 2013
बुधवार, 24 अप्रैल 2013
अश्लील साहित्य और शराब
अश्लील साहित्य और शराब
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छोटी बच्चियों से लेकर समाज की हर स्त्री को उपभोग की वस्तु बनाया है हमारे अतिशय शराब और अश्लील साहित्य के मन माने उपयोग ने ।सरकारें अधिक से अधिक आय बढा़ने के लिये शराब की बिक्री बढ़ाती है । आज इंटरनेट के द्वारा घर घर पोर्न सामग्री देखी जा रही है। पोर्न स्टार कहने में झिझक नहीं ।
आइये अभियान चलायें ।
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छोटी बच्चियों से लेकर समाज की हर स्त्री को उपभोग की वस्तु बनाया है हमारे अतिशय शराब और अश्लील साहित्य के मन माने उपयोग ने ।सरकारें अधिक से अधिक आय बढा़ने के लिये शराब की बिक्री बढ़ाती है । आज इंटरनेट के द्वारा घर घर पोर्न सामग्री देखी जा रही है। पोर्न स्टार कहने में झिझक नहीं ।
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मंगलवार, 23 अप्रैल 2013
उत्थान , समानता का रास्ता -बौद्धिक सत्ता
उत्थान , समानता का रास्ता -बौद्धिक सत्ता
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हमारे देश में धर्मों के अनुपालन में जितना लचीलापन है उतना विश्व के किसी भी देश में नहीं है , परन्तु वहीं यह भी कटु सत्य है कि जातियों को लेकर जितनी कट्टरता और कठोरता अपने देश में है उतनी कहीं नहीं । हिन्दुओं में पूर्ण छूट है ------ईश्वर को साकार मानो चाहे निराकार , देवी मानो या देवता मानो , एक मानो चाहे अनेक । पूजा स्थल भी प्रथक ।धार्मिक पुस्तक भी प्रथक ।यहाँ तक अनीश्वरवादी , नास्तिक भी हिन्दू हो सकता है । हिन्दुओं की भाँति खुलापन दुनिया में अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं । मानव को इतनी स्वतन्त्रता वरेण्य है ।स्तुत्य है । तभी कदाचित भारत भूभाग ही ऐसा है जहाँ विश्व के सारे धर्म या तो जन्में हैं अथवा फूले फले हैं । इसका हमें गर्व है । यहाँ धर्मों पर शास्त्रार्थ करना परम्परा है । यही कारण रहा है कि इस भूभाग में धर्मों का विकास सर्वाधिक रहा है ।
धर्मों के क्षेत्र की स्वतन्त्रता और सरलता सामाजिक क्षेत्र में कहीं नहीं दिखती है । समाज में वर्ण और जातियों के अकाट्य बन्धन हैं , जिन्हें पहले कर्म से बनाया गया वे सब जन्म से होकर रूढ़ बन गयीं । जातियाँ व्यवसायों के आधार पर बनती रहीं और जितने व्यवसाय उतनी जातियों की स्थिति आ गयी । उदाहरण के लिये पान बेचने वाला तोली , बर्तन बनाने वाला कुम्हार , पानी भरने वाला कहार , लकड़ी का काम करने वाला बढ़यी, लोहे के काम वाला लोहार , कपड़े धोने वाला धानुक ,चमड़े के काम वाला चमार , नाव चलाने वाला केवट , भेड़ बकरी पालने वाला गड़रिया , गाय भैंस पालने वाला अहीर, सामान्य कृषक कुर्मी, सब्जी करने वाला काछी आदि आदि ।
व्यवसायों के अतिरिक्त अन्तरजातीय विवाहों से वर्ण संकर जातियाँ बनती रहीं । यहाँ तक कि धर्म परिवर्तन के बाद भी हिन्दू अपनी जातियों को वहांं भी ले गया । तभी मुस्लिम और ईसाइओं में भी जातियाँ मिलती हैं ।जातियों जातियों में जहाँ आरम्भ में कर्म का महत्व था धीरे धीरे जन्म महत्वपूर्ण होने लगा और इतिहास गवाह है कि जन्म आधारित जातीय हिंसा से यह देश लगातार पीड़ित रहा है ।
सामाजिक क्षेत्र में जितना रूढ़ हिन्दू समाज है उतना कोई भी नहीं । यहाँ जातियाँ जन्म से निर्धारित हो जाती हैं और कर्म से उनमें कोई भी बदलाव सम्भव नहीं । निम्न जाति कितना भी उच्च कार्य करे वह निम्न ही बनी रहती है , कभी भी उच्च जाति में प्रवेश नहीं कर पाती । इसी प्रकार उच्च जाति कितना भी निम्न और पतित काम करे वह बेधड़क , बेखौफ़ उच्च ही बनी रहती है , उसे किसी भी तरह निम्न जाति में जाने का ख़तरा नहीं रहता ।
वर्तमान जातिव्यवस्था में अच्छे और बुरे कर्मों का कोई स्थान नहीं । ब्राह्मण -ब्राह्मण रहेगा , वैश्य - वैश्य , क्षत्रिय -क्षत्रिय , शूद्र -शूद्र । यही नहीं इन चारों वर्णों के अन्तर्गत हज़ारों जातियाँ हैं जो भी वही की वही बनी रहती हैं। इस कठोर और आदिम व्यवस्था से हिन्दुस्तान का जहाँ सामाजिक विकास ठहर गया , वहीं सदियों से आपस में जातिगत दूरियाँ बनी रहीं । यहाँ तक हुआ है -- इतिहास गवाह है ,विदेशी आक्रमणों के समय भी हम जातीय दूरी के कारण एक होकर अपनी रक्षा न कर सके , भले ही बार बार गुलामी का कड़वा घूंट पीते रहे ।
जब बौद्ध धर्म आया तब कुछ काल के लिये ही सही मानववाद की स्थापना हुई , परन्तु भारत में उसकी स्थिति कुछ वर्षों के बाद कमज़ोर हो गई । जातियों और वर्णों के विरुद्ध समय समय पर आवाजें भी उठती रहीं और आन्दोलन भी होते रहे परन्तु निर्णायक युद्ध , आन्दोलन कभी लड़े ही नहीं जा सके । अम्बेडकर , लोहिया और दक्षिण भारत में रामास्वामी नायकर तो उत्तर भारत में राम स्वरूप वर्मा उल्लेखनीय नाम हैं ।
इन सबके बाद भी 21वीं सदी में भी स्थिति जस की तस है । जातिवाद कम नहीं हुआ है । जातीय दूरियाँ पहले की तरह बनी हुई हैं आरक्षणकी व्यवस्था से यद्यपि समानता बढ़ी है , परन्तु वैमनस्य भी बढ़ा है । आखिर इसका समाधान कहाँ है ?
आइये इस सामाजिक बीमारी का गहन परीक्षण करें । जहाँ उच्च जातियों में अपने से निम्न जातियों से समानता रखने में अरुचि है वहीं पिछड़ी और दलित जातियों में उच्च बनने की ललक तो है परन्तु रास्तों में भटकाव है । राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के प्रयत्नों में सफलता तो मिली , पर बात बनी नहीं । आंकड़े कुछ और ही कह रहे हैं । प्रगति के आंकड़े बहुत संतोषजनक नहीं कहे जा सकते । नौकरियों ,कुछ अन्य क्षेत्रों में प्रगति इतनी नाकाफी है कि समाज में पिछड़ों , दलितों को अभी भी सामाजिक दृष्टि से हेय समझा जाता है ।
हमें इसके लिये वर्ण व्यवस्था के मूल में जाना होगा । कार्यों का विभाजन देखिये ------जो बौद्धिक कार्य करे वह ब्राह्मण और उसे सर्वोच्च , सर्वश्रेष्ठ माना गया । जो रक्षा , सुरक्षा ,युद्ध ,शासन इत्यादि कार्य करे और सत्ता को स्थापित रखे वह क्षत्रिय और इसे द्वितीय स्थान मिला । ग्राम , नगर में व्यवसाय करने और मूल रूप से लक्ष्मी साधना करने वाले वैश्य या वणिक और यह वर्ण तृतीय स्थान पर आया । अन्तिम स्थान मिला उसे जो सबकी सेवा कार्य करे और कहलाया शूद्र । अब इसका सूक्ष्म परीक्षण कीजिये । एक -जनसंख्या के हिसाब से ऊपर के तीन वर्णों में आने वालों की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 20% है । सेवा कार्य करने वालों की संख्या 80% है । आज के पिछड़ों को किस वर्ण में रखेंगे -- शुद्ध क्षत्रिय वर्ण उन्हें अपने साथ नहीं रखता और शूद्रों से अपने को ऊपर मानते हैं । अनुसूचित और दलित तो हैं ही शूद्र वर्ण में । सामाजिक सम्मान की दृष्टि से देखें तो आज भी राजनैतिक सत्ता प्राप्त करने के बावजूद अहीर -अहीर कहा जाता है , कुर्मी -कुर्मी , चमार -चमार आदि आदि । ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य वर्ण वाला सम्मान इन्हें कभी नहीं मिल पाता है ।
स्वतन्त्र भारत में एक परिवर्तन और आया जिसका उल्लेख किया जाना आवश्यक होगा ।अब सामाजिक वर्गीकरण की अन्य तरह की चार श्रेणियाँ बन गई हैं । ये हैं ----(1) सामान्य जातियाँ
(2) पिछड़़ी जातियाँ
(3) अनुसूचित जातियाँ
(4) अनुसूचित जन जातियाँ
जनसंख्या का प्रतिशत महत्वपूर्ण है ।
सामान्य 20% , पिछड़ी 60% ,अनुसूचित 20%
इस जनसंख्या में 20% उच्च वर्णों के अन्दर और 80% निम्न वर्ण में हैं ।
पिछड़ों और दलितों में राजनैतिक चेतना के लिये समय समय पर जितना किया जाता रहा उसके मुकाबले बौद्धिक सत्ता प्राप्त करने के लिये न के बराबर काम हुये । राजनैतिक सत्ता को अगर ज्ञत्रियत्व माना जाय तो कहा जा सकता है कि क्षत्रिय बनने के लिये तो लगातार प्रयत्न हुये पर सर्वोच्च सत्ता --ब्राह्मणत्व को प्राप्त करने के लिये प्रयत्न लगभग किये ही नहीं गये । इन वर्गों में पढ़ाई -लिखाई , बौद्धिक कार्यों में अरुचि ही रही जिससे उच्च सम्मान के हकदार ये कभी न बन सके ।
समय समय पर इन समाजों में जागरूकता के कार्यक्रम तो चलाये गये पर सतही स्तर पर ही रहे । पिछड़ों , दलितों के विभिन्न संगठनों का ध्यान कभी भी बौद्धिक सत्ता प्राप्त करने पर टिका ही नहीं । मैं स्वयं जीवन भर इनके अनेक संगठनों में रहा परन्तु लाख प्रयत्न करने के बावजूद इनमें विशेष रुचि जाग्रत करने में असमर्थ रहा । वास्तव में ये सारे समाज अपने रूढ़िवादी ढांचे से ही त्रस्त हैं ।अपनी जड़ता से ग्रस्त ये समाज बौद्धिक कार्यों में रुचि ही नहीं लेते और अपनी मूढ़ता , पिछडे़पन का का सारा ठीकरा ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर फोड़ देते हैं । यही कारण है कि आज भी ,2013 तक इन वर्गों में लेखक , कवि , रचनाकार , पत्रकार , कलमकार , कलाकार दीपक लेकर खोजने से भी नहीं मिलते ।
इन वर्गों में इस दुर्गति को अच्छी तरह समझना होगा ।वास्तविक बीमारी को समझ कर ही उसका निदान खोजना उचित होता है । पहले यह मान लेना पड़ेगा कि अतीत की स्थिति कुछ भी रही हो ,कम से कम अब स्वतन्त्रता के बाद ब्राह्मणवाद को दोष देना कदापि उचित नहीं । अब मानना ही पड़ेगा कि हम में पढ़े लिखे कम हैं , विद्वान नहीं हैं , लेखक , कवि , पत्रकार नहीं , हम पुस्तकें नहीं लिख रहे ---तो इन सबके लिये केवल हमारा वर्ग ही दोषी है और विशेषकर सामाजिक और राजनैतिक नेता । इनकी सोच और मानसिकता आज भी पिछड़ी है , दलित है । आज भी भारी संख्या में इन वर्गों में शराब और नशे का सेवन है , पढ़ाई लिखाई के प्रति समर्पण नहीं ।
इस पृष्ठभूमि में विचारोपरान्त मेरे द्वारा इन 80% लोगों के समाजों के लिये लेखन में रुचि जाग्रत करने , व्यापक लेखकीय कर्म करने , पत्रकारिता करने , पुस्तकें लिखने , कलमकार और कलाकार बनने ---आदि क्षेत्रों में कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं । मेरी कोशिश है कि ज्ञान और बौद्धिक क्षेत्र के सारे कार्यों को ये वर्ग करने लगें और समाज के उच्च कहे जाने वर्गों के साथ कंधे से कन्धा मिलाने लगें । जब ये वर्ग बौद्धिक सत्ता प्राप्त कर लेंगे तब स्वयं ही ब्राह्मणत्व को प्राप्त हो जायेंगे । धर्म , दर्शन , ज्ञान , विज्ञान के क्षेत्रों में इनका भारी दखल हो जाने से स्वयं सम्मान बढ़ जायेगा । इस सम्पूर्ण स्थिति से पूरे भारतवर्ष का समग्र विकास होगा । वर्णों और जातियों की दूरियाँ मिटेंगी । समानता बढ़ेगी , विषमता घटेगी । देश तभी और केवल तभी पुनः विश्व गुरू बनेगा ।
आइये हमारे साथ एक नये युग का सूत्रपात करें । अपने अपने समाजों के लेखन में रुचि रखनेवालों और लेखन तथा धर्म, दर्शन , कला के क्षेत्रों में काम करने वालों के विवरण हमें प्रेषित करने का कष्ट करें ।
आपका
राज कुमार सचान "होरी"
राष्ट्रीय संयोजक -- बदलता भारत ( INDIA CHANGES ) , राष्ट्रीय अध्यक्ष --- अर्जक साहित्य परिषद ।
www.indiachanges.com ,http/ horibadaltabharat.blogspot.com , http/ arjaksahityaparishad.blogspot.com
Email- horiindiachanges@gmail.com , indiachanges2013@gmail.com , horirajkumarsachan@gmail.com
Address -- Srs international school , 16 basant vihar , manas vihar road , Indira nagar , lucknow ( up) , India .
08938841199 , 08800228539
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हमारे देश में धर्मों के अनुपालन में जितना लचीलापन है उतना विश्व के किसी भी देश में नहीं है , परन्तु वहीं यह भी कटु सत्य है कि जातियों को लेकर जितनी कट्टरता और कठोरता अपने देश में है उतनी कहीं नहीं । हिन्दुओं में पूर्ण छूट है ------ईश्वर को साकार मानो चाहे निराकार , देवी मानो या देवता मानो , एक मानो चाहे अनेक । पूजा स्थल भी प्रथक ।धार्मिक पुस्तक भी प्रथक ।यहाँ तक अनीश्वरवादी , नास्तिक भी हिन्दू हो सकता है । हिन्दुओं की भाँति खुलापन दुनिया में अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं । मानव को इतनी स्वतन्त्रता वरेण्य है ।स्तुत्य है । तभी कदाचित भारत भूभाग ही ऐसा है जहाँ विश्व के सारे धर्म या तो जन्में हैं अथवा फूले फले हैं । इसका हमें गर्व है । यहाँ धर्मों पर शास्त्रार्थ करना परम्परा है । यही कारण रहा है कि इस भूभाग में धर्मों का विकास सर्वाधिक रहा है ।
धर्मों के क्षेत्र की स्वतन्त्रता और सरलता सामाजिक क्षेत्र में कहीं नहीं दिखती है । समाज में वर्ण और जातियों के अकाट्य बन्धन हैं , जिन्हें पहले कर्म से बनाया गया वे सब जन्म से होकर रूढ़ बन गयीं । जातियाँ व्यवसायों के आधार पर बनती रहीं और जितने व्यवसाय उतनी जातियों की स्थिति आ गयी । उदाहरण के लिये पान बेचने वाला तोली , बर्तन बनाने वाला कुम्हार , पानी भरने वाला कहार , लकड़ी का काम करने वाला बढ़यी, लोहे के काम वाला लोहार , कपड़े धोने वाला धानुक ,चमड़े के काम वाला चमार , नाव चलाने वाला केवट , भेड़ बकरी पालने वाला गड़रिया , गाय भैंस पालने वाला अहीर, सामान्य कृषक कुर्मी, सब्जी करने वाला काछी आदि आदि ।
व्यवसायों के अतिरिक्त अन्तरजातीय विवाहों से वर्ण संकर जातियाँ बनती रहीं । यहाँ तक कि धर्म परिवर्तन के बाद भी हिन्दू अपनी जातियों को वहांं भी ले गया । तभी मुस्लिम और ईसाइओं में भी जातियाँ मिलती हैं ।जातियों जातियों में जहाँ आरम्भ में कर्म का महत्व था धीरे धीरे जन्म महत्वपूर्ण होने लगा और इतिहास गवाह है कि जन्म आधारित जातीय हिंसा से यह देश लगातार पीड़ित रहा है ।
सामाजिक क्षेत्र में जितना रूढ़ हिन्दू समाज है उतना कोई भी नहीं । यहाँ जातियाँ जन्म से निर्धारित हो जाती हैं और कर्म से उनमें कोई भी बदलाव सम्भव नहीं । निम्न जाति कितना भी उच्च कार्य करे वह निम्न ही बनी रहती है , कभी भी उच्च जाति में प्रवेश नहीं कर पाती । इसी प्रकार उच्च जाति कितना भी निम्न और पतित काम करे वह बेधड़क , बेखौफ़ उच्च ही बनी रहती है , उसे किसी भी तरह निम्न जाति में जाने का ख़तरा नहीं रहता ।
वर्तमान जातिव्यवस्था में अच्छे और बुरे कर्मों का कोई स्थान नहीं । ब्राह्मण -ब्राह्मण रहेगा , वैश्य - वैश्य , क्षत्रिय -क्षत्रिय , शूद्र -शूद्र । यही नहीं इन चारों वर्णों के अन्तर्गत हज़ारों जातियाँ हैं जो भी वही की वही बनी रहती हैं। इस कठोर और आदिम व्यवस्था से हिन्दुस्तान का जहाँ सामाजिक विकास ठहर गया , वहीं सदियों से आपस में जातिगत दूरियाँ बनी रहीं । यहाँ तक हुआ है -- इतिहास गवाह है ,विदेशी आक्रमणों के समय भी हम जातीय दूरी के कारण एक होकर अपनी रक्षा न कर सके , भले ही बार बार गुलामी का कड़वा घूंट पीते रहे ।
जब बौद्ध धर्म आया तब कुछ काल के लिये ही सही मानववाद की स्थापना हुई , परन्तु भारत में उसकी स्थिति कुछ वर्षों के बाद कमज़ोर हो गई । जातियों और वर्णों के विरुद्ध समय समय पर आवाजें भी उठती रहीं और आन्दोलन भी होते रहे परन्तु निर्णायक युद्ध , आन्दोलन कभी लड़े ही नहीं जा सके । अम्बेडकर , लोहिया और दक्षिण भारत में रामास्वामी नायकर तो उत्तर भारत में राम स्वरूप वर्मा उल्लेखनीय नाम हैं ।
इन सबके बाद भी 21वीं सदी में भी स्थिति जस की तस है । जातिवाद कम नहीं हुआ है । जातीय दूरियाँ पहले की तरह बनी हुई हैं आरक्षणकी व्यवस्था से यद्यपि समानता बढ़ी है , परन्तु वैमनस्य भी बढ़ा है । आखिर इसका समाधान कहाँ है ?
आइये इस सामाजिक बीमारी का गहन परीक्षण करें । जहाँ उच्च जातियों में अपने से निम्न जातियों से समानता रखने में अरुचि है वहीं पिछड़ी और दलित जातियों में उच्च बनने की ललक तो है परन्तु रास्तों में भटकाव है । राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के प्रयत्नों में सफलता तो मिली , पर बात बनी नहीं । आंकड़े कुछ और ही कह रहे हैं । प्रगति के आंकड़े बहुत संतोषजनक नहीं कहे जा सकते । नौकरियों ,कुछ अन्य क्षेत्रों में प्रगति इतनी नाकाफी है कि समाज में पिछड़ों , दलितों को अभी भी सामाजिक दृष्टि से हेय समझा जाता है ।
हमें इसके लिये वर्ण व्यवस्था के मूल में जाना होगा । कार्यों का विभाजन देखिये ------जो बौद्धिक कार्य करे वह ब्राह्मण और उसे सर्वोच्च , सर्वश्रेष्ठ माना गया । जो रक्षा , सुरक्षा ,युद्ध ,शासन इत्यादि कार्य करे और सत्ता को स्थापित रखे वह क्षत्रिय और इसे द्वितीय स्थान मिला । ग्राम , नगर में व्यवसाय करने और मूल रूप से लक्ष्मी साधना करने वाले वैश्य या वणिक और यह वर्ण तृतीय स्थान पर आया । अन्तिम स्थान मिला उसे जो सबकी सेवा कार्य करे और कहलाया शूद्र । अब इसका सूक्ष्म परीक्षण कीजिये । एक -जनसंख्या के हिसाब से ऊपर के तीन वर्णों में आने वालों की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 20% है । सेवा कार्य करने वालों की संख्या 80% है । आज के पिछड़ों को किस वर्ण में रखेंगे -- शुद्ध क्षत्रिय वर्ण उन्हें अपने साथ नहीं रखता और शूद्रों से अपने को ऊपर मानते हैं । अनुसूचित और दलित तो हैं ही शूद्र वर्ण में । सामाजिक सम्मान की दृष्टि से देखें तो आज भी राजनैतिक सत्ता प्राप्त करने के बावजूद अहीर -अहीर कहा जाता है , कुर्मी -कुर्मी , चमार -चमार आदि आदि । ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य वर्ण वाला सम्मान इन्हें कभी नहीं मिल पाता है ।
स्वतन्त्र भारत में एक परिवर्तन और आया जिसका उल्लेख किया जाना आवश्यक होगा ।अब सामाजिक वर्गीकरण की अन्य तरह की चार श्रेणियाँ बन गई हैं । ये हैं ----(1) सामान्य जातियाँ
(2) पिछड़़ी जातियाँ
(3) अनुसूचित जातियाँ
(4) अनुसूचित जन जातियाँ
जनसंख्या का प्रतिशत महत्वपूर्ण है ।
सामान्य 20% , पिछड़ी 60% ,अनुसूचित 20%
इस जनसंख्या में 20% उच्च वर्णों के अन्दर और 80% निम्न वर्ण में हैं ।
पिछड़ों और दलितों में राजनैतिक चेतना के लिये समय समय पर जितना किया जाता रहा उसके मुकाबले बौद्धिक सत्ता प्राप्त करने के लिये न के बराबर काम हुये । राजनैतिक सत्ता को अगर ज्ञत्रियत्व माना जाय तो कहा जा सकता है कि क्षत्रिय बनने के लिये तो लगातार प्रयत्न हुये पर सर्वोच्च सत्ता --ब्राह्मणत्व को प्राप्त करने के लिये प्रयत्न लगभग किये ही नहीं गये । इन वर्गों में पढ़ाई -लिखाई , बौद्धिक कार्यों में अरुचि ही रही जिससे उच्च सम्मान के हकदार ये कभी न बन सके ।
समय समय पर इन समाजों में जागरूकता के कार्यक्रम तो चलाये गये पर सतही स्तर पर ही रहे । पिछड़ों , दलितों के विभिन्न संगठनों का ध्यान कभी भी बौद्धिक सत्ता प्राप्त करने पर टिका ही नहीं । मैं स्वयं जीवन भर इनके अनेक संगठनों में रहा परन्तु लाख प्रयत्न करने के बावजूद इनमें विशेष रुचि जाग्रत करने में असमर्थ रहा । वास्तव में ये सारे समाज अपने रूढ़िवादी ढांचे से ही त्रस्त हैं ।अपनी जड़ता से ग्रस्त ये समाज बौद्धिक कार्यों में रुचि ही नहीं लेते और अपनी मूढ़ता , पिछडे़पन का का सारा ठीकरा ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर फोड़ देते हैं । यही कारण है कि आज भी ,2013 तक इन वर्गों में लेखक , कवि , रचनाकार , पत्रकार , कलमकार , कलाकार दीपक लेकर खोजने से भी नहीं मिलते ।
इन वर्गों में इस दुर्गति को अच्छी तरह समझना होगा ।वास्तविक बीमारी को समझ कर ही उसका निदान खोजना उचित होता है । पहले यह मान लेना पड़ेगा कि अतीत की स्थिति कुछ भी रही हो ,कम से कम अब स्वतन्त्रता के बाद ब्राह्मणवाद को दोष देना कदापि उचित नहीं । अब मानना ही पड़ेगा कि हम में पढ़े लिखे कम हैं , विद्वान नहीं हैं , लेखक , कवि , पत्रकार नहीं , हम पुस्तकें नहीं लिख रहे ---तो इन सबके लिये केवल हमारा वर्ग ही दोषी है और विशेषकर सामाजिक और राजनैतिक नेता । इनकी सोच और मानसिकता आज भी पिछड़ी है , दलित है । आज भी भारी संख्या में इन वर्गों में शराब और नशे का सेवन है , पढ़ाई लिखाई के प्रति समर्पण नहीं ।
इस पृष्ठभूमि में विचारोपरान्त मेरे द्वारा इन 80% लोगों के समाजों के लिये लेखन में रुचि जाग्रत करने , व्यापक लेखकीय कर्म करने , पत्रकारिता करने , पुस्तकें लिखने , कलमकार और कलाकार बनने ---आदि क्षेत्रों में कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं । मेरी कोशिश है कि ज्ञान और बौद्धिक क्षेत्र के सारे कार्यों को ये वर्ग करने लगें और समाज के उच्च कहे जाने वर्गों के साथ कंधे से कन्धा मिलाने लगें । जब ये वर्ग बौद्धिक सत्ता प्राप्त कर लेंगे तब स्वयं ही ब्राह्मणत्व को प्राप्त हो जायेंगे । धर्म , दर्शन , ज्ञान , विज्ञान के क्षेत्रों में इनका भारी दखल हो जाने से स्वयं सम्मान बढ़ जायेगा । इस सम्पूर्ण स्थिति से पूरे भारतवर्ष का समग्र विकास होगा । वर्णों और जातियों की दूरियाँ मिटेंगी । समानता बढ़ेगी , विषमता घटेगी । देश तभी और केवल तभी पुनः विश्व गुरू बनेगा ।
आइये हमारे साथ एक नये युग का सूत्रपात करें । अपने अपने समाजों के लेखन में रुचि रखनेवालों और लेखन तथा धर्म, दर्शन , कला के क्षेत्रों में काम करने वालों के विवरण हमें प्रेषित करने का कष्ट करें ।
आपका
राज कुमार सचान "होरी"
राष्ट्रीय संयोजक -- बदलता भारत ( INDIA CHANGES ) , राष्ट्रीय अध्यक्ष --- अर्जक साहित्य परिषद ।
www.indiachanges.com ,http/ horibadaltabharat.blogspot.com , http/ arjaksahityaparishad.blogspot.com
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रविवार, 21 अप्रैल 2013
समानता का समर्थन विषमता का विरोध
समानता का समर्थन विषमता का विरोध
****************************************
सभी मनुष्य जन्म से समान हैं । वर्णों , जातियों , धर्मों , भाषाओं आदि के आधार पर विभेद स्वयं मनुष्यों ने पैदा किये हैं । जन्मदाता नें तो केवल मनुष्य के रूप में ही हमें जन्म दिया है । इस लिये जहाँ भी ,जब भी ,जैसे भी विषमता का वर्णन होगा हम उसका खंडन और विरोध करेंगे । परन्तु उसी अंश तक । जैसे रामचरितमानस और मनुष्मृति में विषमता वाले अंशों का विरोध और खंडन , न कि सम्पूर्ण ग्रन्थों का ।
हमें यदि बहुदेववाद पर आस्था नहीं है तो हम उसको न माने और अपनी आस्था के अनुसार धर्म का पालन करें । यहाँ तक हम नया पन्थ चला सकते हैं या पुराने पन्थों , रीतिरिवाजों में संसोधन कर सकते हैं । हर व्यक्ति अपने अनुसार धर्म मानने के लिये पूर्ण स्वतन्त्र है । लेकिन कोई रास्ता खोजना होगा , जैसे स्वामी दयानन्द जी ने आर्य समाज की स्थापना कर के दिया था । बहुत पहले यही कार्य महात्मा बुद्ध और जैन मुनियों ने किया था ।
पर यह ध्यान रहे कि हम ज्ञान के ही विरोधी न हो जायें । क्या कारण है कि देश में 80%आबादी ( पिछड़ी,अनुसूचित ) में लेखकों , कवियों , पत्रकारों , कलाकारों , कलमकारों की संख्या नगण्य है । इन समाजों के लोगों ने स्वयं ही इन विद्या के क्षेत्रों में कभी ध्यान नहीं दिया और दोष सनातन व्यवस्था और ब्राह्मण समाज पर मढ़ते रहे । 1200 सौ वर्षों के मुस्लिम और अन्ग्रेजों के शासन में समाज के इन पिछड़े , दलित समाजों पर उच्च वर्णों की कोई पाबन्दी नहीं थी बल्कि इन समाजों ने स्वयं अपना सुधार नहीं किया । स्वयं विद्वान , पंडित बनने में कोई रुचि नहीं ली बस दूसरों को दोष देकर खानापूर्ति कर ली । विभिन्न विषयों पर किताबें इन वर्गों द्वारा न के बराबर लिखी गयीं । खेती , मज़दूरी में लगे रहे ,पढ़ने लिखने पर ध्यान नहीं दिया ।
1947 के पश्चात संविधान लागू है पर स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं । आज भी इन दलित , पिछड़ों द्वारा कितनी किताबें लिखी जा रही हैं ? कितने लेखक , पत्रकार , कवि हैं ? नहीं हैं तो दोष आज भी हम उच्च वर्णों को देते हैं । हम अपनी मूर्खताओं के लिये भी दोषी ब्राह्मणों और उच्च वर्गों को ठहराते हैं । आज भी ज्ञान सृजन पर कोई ध्यान नहीं । अधिक से अधिक राजनैतिक सत्ता पर ध्यान तो गया पर ज्ञान , सृजन उपेक्षित ही रहा ।
आइये हम सूरज पर थूकनें के बजाय उससे सीखें । ज्ञान अर्जित करें । समानता प्राप्त करें । दलित और पिछडे़ ,उच्च वर्गों , वर्णों के समकक्ष पहुँचे ।
राज कुमार सचान होरी
कवि,लेखक, साहित्यकार , वक्ता
राष्ट्रीय संयोजक ---India Changes .राष्ट्रीय अध्यक्ष ---अर्जक साहित्य परिषद
Mob.07599155999
Eid horiindiachanges@gmail.com , arjaksangh.s.p@gmail.com
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सभी मनुष्य जन्म से समान हैं । वर्णों , जातियों , धर्मों , भाषाओं आदि के आधार पर विभेद स्वयं मनुष्यों ने पैदा किये हैं । जन्मदाता नें तो केवल मनुष्य के रूप में ही हमें जन्म दिया है । इस लिये जहाँ भी ,जब भी ,जैसे भी विषमता का वर्णन होगा हम उसका खंडन और विरोध करेंगे । परन्तु उसी अंश तक । जैसे रामचरितमानस और मनुष्मृति में विषमता वाले अंशों का विरोध और खंडन , न कि सम्पूर्ण ग्रन्थों का ।
हमें यदि बहुदेववाद पर आस्था नहीं है तो हम उसको न माने और अपनी आस्था के अनुसार धर्म का पालन करें । यहाँ तक हम नया पन्थ चला सकते हैं या पुराने पन्थों , रीतिरिवाजों में संसोधन कर सकते हैं । हर व्यक्ति अपने अनुसार धर्म मानने के लिये पूर्ण स्वतन्त्र है । लेकिन कोई रास्ता खोजना होगा , जैसे स्वामी दयानन्द जी ने आर्य समाज की स्थापना कर के दिया था । बहुत पहले यही कार्य महात्मा बुद्ध और जैन मुनियों ने किया था ।
पर यह ध्यान रहे कि हम ज्ञान के ही विरोधी न हो जायें । क्या कारण है कि देश में 80%आबादी ( पिछड़ी,अनुसूचित ) में लेखकों , कवियों , पत्रकारों , कलाकारों , कलमकारों की संख्या नगण्य है । इन समाजों के लोगों ने स्वयं ही इन विद्या के क्षेत्रों में कभी ध्यान नहीं दिया और दोष सनातन व्यवस्था और ब्राह्मण समाज पर मढ़ते रहे । 1200 सौ वर्षों के मुस्लिम और अन्ग्रेजों के शासन में समाज के इन पिछड़े , दलित समाजों पर उच्च वर्णों की कोई पाबन्दी नहीं थी बल्कि इन समाजों ने स्वयं अपना सुधार नहीं किया । स्वयं विद्वान , पंडित बनने में कोई रुचि नहीं ली बस दूसरों को दोष देकर खानापूर्ति कर ली । विभिन्न विषयों पर किताबें इन वर्गों द्वारा न के बराबर लिखी गयीं । खेती , मज़दूरी में लगे रहे ,पढ़ने लिखने पर ध्यान नहीं दिया ।
1947 के पश्चात संविधान लागू है पर स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं । आज भी इन दलित , पिछड़ों द्वारा कितनी किताबें लिखी जा रही हैं ? कितने लेखक , पत्रकार , कवि हैं ? नहीं हैं तो दोष आज भी हम उच्च वर्णों को देते हैं । हम अपनी मूर्खताओं के लिये भी दोषी ब्राह्मणों और उच्च वर्गों को ठहराते हैं । आज भी ज्ञान सृजन पर कोई ध्यान नहीं । अधिक से अधिक राजनैतिक सत्ता पर ध्यान तो गया पर ज्ञान , सृजन उपेक्षित ही रहा ।
आइये हम सूरज पर थूकनें के बजाय उससे सीखें । ज्ञान अर्जित करें । समानता प्राप्त करें । दलित और पिछडे़ ,उच्च वर्गों , वर्णों के समकक्ष पहुँचे ।
राज कुमार सचान होरी
कवि,लेखक, साहित्यकार , वक्ता
राष्ट्रीय संयोजक ---India Changes .राष्ट्रीय अध्यक्ष ---अर्जक साहित्य परिषद
Mob.07599155999
Eid horiindiachanges@gmail.com , arjaksangh.s.p@gmail.com
www.indiachanges.com , horibadaltabharat.blogspot.com ,arjaksahityaparishad.blogspot.com
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गुरुवार, 18 अप्रैल 2013
Fwd: HORI POET
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From: HORI POET <noreply@blogger.com>
Date: 17 June 2011 8:28:38 PM GMT+05:30
To: horirajkumar@gmail.com
Subject: HORI POET
HORI POET
HORI POET
Posted: 17 Jun 2011 05:11 AM PDT
होरी तब भी दीन था , होरी अब भी दीन |ग्राम वही , धनिया वही , पानी वही , ज़मीन ||%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%राज कुमार सचान 'होरी'
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रविवार, 14 अप्रैल 2013
सामाजिक समानता हेतु -- दो दिवसीय उपवास
सामाजिक समानता हेतु -- दो दिवसीय उपवास
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
स्थान --दारुल सफा, लखनऊ दिनांक -- 1 व 2 मई 2013
----------------------------------------------------------------------
महोदय ,
मज़दूर दिवस 1 मई को समर्पित--- विश्व भर में मानववाद , समानता की स्थापना के लिये ,ऊँच -नीच भावना,अस्प्रश्यता को समूल मिटाने के लिये तथा मानववाद की घोर विरोधी व्यवस्था --वर्ण और जाति को मिटाते हुये समरस समाज की स्थापना के लिये और सामाजिक शुद्धीकरण के लिये दो दिवसीय उपवास का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है ।
महात्मा गौतम बुद्ध , डाक्टर भीमराव अम्बेडकर , डाक्टर राम मनोहर लोहिया और महामना राम स्वरूप वर्मा आदि द्वारा पोषित सामाजिक निर्माण की आज और अधिक आवश्यकता है ।आपसे अनुरोध है कि इस कार्यक्रम में भाग लेते हुये मानववाद की स्थापना में अपना अमूल्य योगदान देने का कष्ट करें ।
दो दिवसीय उपवास कार्यक्रम का नेतृत्व श्री राज कुमार सचान "होरी" प्रसिद्ध कवि,लेखक, साहित्यकार ,समाजसेवी और प्रखर वक्ता , राष्ट्रीय संयोजक 'बदलता भारत' ( India Changes ) , राष्ट्रीय अध्यक्ष ' अर्जक साहित्य परिषद ' द्वारा किया जायेगा ।
सामूहिक उपवास कार्यक्रम में समान विचारधारा वाले व्यक्तियों और संगठनों द्वारा भाग लिया जायेगा । 1 मई की प्रात: 9 बजे से लगातार क्रमिक उपवास 2 मई की सायं 4 बजे तक किया जायेगा । दो दिन प्रथक प्रथक उपवास जत्थे बैठेंगे । कुछ व्यक्ति दो दिन का उपवास करेंगे।
यह उपवास व्यक्तिगत और सामाजिक शुद्धीकरण के लिये है । क्रपया अधिक से अधिक भाग ले कर सामाजिक जागरूकता को बढ़ायें और समरस समाज के रास्ते सशक्त राष्ट्र के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने का कष्ट करें ।
निवेदकगण ---------
हरिपाल सिंह ,प्रदेश संयोजक ,
विश्राम चौधरी सह संयोजक
रिज़वान 'चंचल' सह संयोजक
INDIA CHANGES ( बदलता भारत )
तथा
अर्जक साहित्य परिषद,लखनऊ
प्रतिष्ठा में ------ समान विचारधर्मी संगठन ।
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०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
स्थान --दारुल सफा, लखनऊ दिनांक -- 1 व 2 मई 2013
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महोदय ,
मज़दूर दिवस 1 मई को समर्पित--- विश्व भर में मानववाद , समानता की स्थापना के लिये ,ऊँच -नीच भावना,अस्प्रश्यता को समूल मिटाने के लिये तथा मानववाद की घोर विरोधी व्यवस्था --वर्ण और जाति को मिटाते हुये समरस समाज की स्थापना के लिये और सामाजिक शुद्धीकरण के लिये दो दिवसीय उपवास का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है ।
महात्मा गौतम बुद्ध , डाक्टर भीमराव अम्बेडकर , डाक्टर राम मनोहर लोहिया और महामना राम स्वरूप वर्मा आदि द्वारा पोषित सामाजिक निर्माण की आज और अधिक आवश्यकता है ।आपसे अनुरोध है कि इस कार्यक्रम में भाग लेते हुये मानववाद की स्थापना में अपना अमूल्य योगदान देने का कष्ट करें ।
दो दिवसीय उपवास कार्यक्रम का नेतृत्व श्री राज कुमार सचान "होरी" प्रसिद्ध कवि,लेखक, साहित्यकार ,समाजसेवी और प्रखर वक्ता , राष्ट्रीय संयोजक 'बदलता भारत' ( India Changes ) , राष्ट्रीय अध्यक्ष ' अर्जक साहित्य परिषद ' द्वारा किया जायेगा ।
सामूहिक उपवास कार्यक्रम में समान विचारधारा वाले व्यक्तियों और संगठनों द्वारा भाग लिया जायेगा । 1 मई की प्रात: 9 बजे से लगातार क्रमिक उपवास 2 मई की सायं 4 बजे तक किया जायेगा । दो दिन प्रथक प्रथक उपवास जत्थे बैठेंगे । कुछ व्यक्ति दो दिन का उपवास करेंगे।
यह उपवास व्यक्तिगत और सामाजिक शुद्धीकरण के लिये है । क्रपया अधिक से अधिक भाग ले कर सामाजिक जागरूकता को बढ़ायें और समरस समाज के रास्ते सशक्त राष्ट्र के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने का कष्ट करें ।
निवेदकगण ---------
हरिपाल सिंह ,प्रदेश संयोजक ,
विश्राम चौधरी सह संयोजक
रिज़वान 'चंचल' सह संयोजक
INDIA CHANGES ( बदलता भारत )
तथा
अर्जक साहित्य परिषद,लखनऊ
प्रतिष्ठा में ------ समान विचारधर्मी संगठन ।
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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013
Fw: [KURMI KSHATRIYA MAHAA SANGH] 99% villagers...[kurmis]
---------- Forwarded message ----------
From: Rajkumar Hori
Date: Thursday, October 27, 2011
Subject: Fw: [KURMI KSHATRIYA MAHAA SANGH] 99% villagers...[kurmis]
To: Raj Sachan `HORI` <rajkumarsachanhori@gmail.com>
Cc: Kusum Sachan <kusumsachan@ymail.com>
----- Forwarded Message -----
Froam: AKHIL BHARTIYA KURMI KSHATRIYA MAHAA SANGH <kurmikshatriyamahaasangh@gmail.com>
To: rhori@ymail.com
Sent: Friday, 21 October 2011 11:55 AM
Subject: [KURMI KSHATRIYA MAHAA SANGH] 99% villagers...[kurmis]
--
Posted By AKHIL BHARTIYA KURMI KSHATRIYA MAHAA SANGH to KURMI KSHATRIYA MAHAA SANGH on 10/20/2011 11:25:00 PM
Froam: AKHIL BHARTIYA KURMI KSHATRIYA MAHAA SANGH <kurmikshatriyamahaasangh@gmail.com>
To: rhori@ymail.com
Sent: Friday, 21 October 2011 11:55 AM
Subject: [KURMI KSHATRIYA MAHAA SANGH] 99% villagers...[kurmis]
भारत के कुर्मी
*************
आज २०११ में भी देश में कुर्मी ,कुर्मिक्षत्रिय , पटेल आदि आदि लगभग १४०० उपजातियों में बटी यह जाति पूर्ण रूप से ग्रामीण है | ९९% जनसँख्या ग्रामों में रहती है , इसका शहरीकरण न होने के कारण इसमें अन्य जातियों की तुलना में बेरोजगारी और गरीबी अधिक है |
अचल संपत्ति से सदियों से जुड़े होने के कारण इसका चरित्र भी अचल है , आपस में लड़ना , एक दुसरे की बुराई करना ,कभी भी अपने लोगों की प्रशंसा न करना ....इसके जातीय लक्षण हैं |
ग्रामों में बसे होने के कारण यह जाति बौद्धिक क्रियाकलापों से भी दूर रही |साहित्य ,लेखन तथा अन्य कलाओं में इसका योगदान शून्य है |
धर्म ,दर्शन, इतिहास तथा अन्य विषयों में इस जाति के द्वारा पुस्तकें न के बराबर लिखी गयीं | साहित्य में भागीदारी लगभघ शून्य |
आईये महासंघ के शहरीकरण के अभियान को सब मिल कर सफल बनाएं |अपने अपने परिचितों को शहरों में तो बसायें ही ,अन्य लोगों को भी जागरूक करें |
"सत्ता और साहित्य में भागीदारी " महासंघ का आन्दोलन है ,आईये आगे बढ़ें इक्कीसवीं सदी को पटेलों की सदी बनायें |
पटेल राज कुमार सचान 'होरी'
--
Posted By AKHIL BHARTIYA KURMI KSHATRIYA MAHAA SANGH to KURMI KSHATRIYA MAHAA SANGH on 10/20/2011 11:25:00 PM
बुधवार, 10 अप्रैल 2013
राम तेरे नाम
राम तेरे नाम
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
(१)
राम एक आराध्य थाम गतिमय होना ।
रोम रोम में राम बीज प्रतिपल बोना ।।
जीवन स्वर्णिम होगा रे मन धीरज रख ,
राम नाम जप ,मनवा प्रातः शाम ।
००००००००००००००००००००००००००००००
(२)
आश और विश्वास स्वयं में राम सिखाता ।
अन्धकार में पथ प्रकाश का राम दिखाता ।।
चलता रह बस ,चलता रह रे मन अविचल,
निष्काम भाव मन करता रह तू काम ।
००००००००००००००००००००००००००००००००
(३)
कितने आये गये नाम ले तेरा बस ।
अपना भी तो कुछ पल का है डेरा बस ।।
बस तुम जाना नाम अमर कर इस उस जग,
निश्चिंत भाव से जाना फिर उस धाम ।
००००००००००००००००००००००००००००००००००
(४)
आना जाना नाट्य मन्च के दृश्य मनोहर ।
अपने अपने पाठ पूर्ण कर जाते उस घर ।।
बिना मोह भ्रम रे मन ,जीवन यापन कर ,
"होरी" जाना कह कह कह हे राम !
००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
राज कुमार सचान "होरी"
कवि, साहित्यकार ,वक्ता
राष्ट्रीय संयोजक ----India changes( बदलता भारत )
email - rajkumarsachanhori@gmail.com , horiindiachanges@gmail.com , www.indiachanges.com ,http// horibadaltabharat.blogspot.com ,http//pateltimes.blogspot.com
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०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
(१)
राम एक आराध्य थाम गतिमय होना ।
रोम रोम में राम बीज प्रतिपल बोना ।।
जीवन स्वर्णिम होगा रे मन धीरज रख ,
राम नाम जप ,मनवा प्रातः शाम ।
००००००००००००००००००००००००००००००
(२)
आश और विश्वास स्वयं में राम सिखाता ।
अन्धकार में पथ प्रकाश का राम दिखाता ।।
चलता रह बस ,चलता रह रे मन अविचल,
निष्काम भाव मन करता रह तू काम ।
००००००००००००००००००००००००००००००००
(३)
कितने आये गये नाम ले तेरा बस ।
अपना भी तो कुछ पल का है डेरा बस ।।
बस तुम जाना नाम अमर कर इस उस जग,
निश्चिंत भाव से जाना फिर उस धाम ।
००००००००००००००००००००००००००००००००००
(४)
आना जाना नाट्य मन्च के दृश्य मनोहर ।
अपने अपने पाठ पूर्ण कर जाते उस घर ।।
बिना मोह भ्रम रे मन ,जीवन यापन कर ,
"होरी" जाना कह कह कह हे राम !
००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
राज कुमार सचान "होरी"
कवि, साहित्यकार ,वक्ता
राष्ट्रीय संयोजक ----India changes( बदलता भारत )
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मंगलवार, 9 अप्रैल 2013
Fwd: गीत -"रूपसि ,रूप तुम्हारा००००००"
---------- Forwarded message ----------
From: Rajkumar sachan
Date: Wednesday, April 3, 2013
Subject: गीत -"रूपसि ,रूप तुम्हारा००००००"
To: Raj Kumar Sachan Hori <rajkumarsachanhori@gmail.com>, rajkumarsachanhori@facebook.com, Hiralal Gupta <hlgupta15@gmail.com>, Raj Kumar Sachan Hori <horirajkumar@gmail.com>, Srs International School <srsintschool@gmail.com>, Srs International School <srsisindiranagar@gmail.com>
गीत -"रूपसि ,रूप तुम्हारा००००००"
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
------ राज कुमार सचान "होरी"
-----------------------------------------------------------------------------
रूपसि, रूप तुम्हारा कोई नहीं निहारेगा ।
पीछे से कोई , हौले से नहीं पुकारेगा ।।
(1)
नव विधान के व्यूहपाश में , यौवन बिलखेगा ,
नारी का सौन्दर्य प्रशंसा के हित तरसेगा ।
कारागारों के कल्पित भय से भयभीत हुआ ,
चातक कोई कभी चाँद को नहीं निहारेगा ।
पीछे से कोई हौले से ०००००००००
--------------------------------------------------------------------------------
(2)
अब मजनू के लिये सदा ही लैला तरसेगी ,
बिना मेघ केबिजली भी अब किस पर तड़पेगी ?
पपिहा पिउ पिउ बोलेगा भी कैसे नये विधान में,
कोई फ़रहाद कभी सीरी को नहीं पुकारेगा ।
रूपसि, रूप तुम्हारा००००००००००००००
(3)
नैनों सैनों से न प्रेम संदेश लिखेंगे हम ,
प्यार मोहब्बत की दुनियाँ में कहाँ दिखेंगे हम ।
आदम -हौव्वा , मनु-सतरूपा डरे डरे होंगे ,
गीतकार कम्पायमान श्रंगार बिसारेगा ।
रूपसि, रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००
(4)
अलंकार श्रंगार और रस रोयेंगे घर घर ,
अब बसंत पतझड़ सा होगा झर झर ग्राम नगर ।
सूरदास पुरुषों के आगे मन मारे सौन्दर्य ,
बुझा-बुझा सा प्यासा -प्यासा केश सवांरेगा ।
रूपसि, रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००
(5)
व्यर्थ -व्यर्थ श्रंगार प्रसाधन ,सजना और संवरना ,
अलंकार नख शिख कपोल कटि भृकुटी और सिहरना ।
रूप निरर्थक , नहीं अगर , दीदार करे कोई ,
कामदेव के बिना तुम्हें रति ! कौन निखारेगा ?
रूपसि ,रूप तुम्हारा०००००००००००००००००००००
(6)
नव विधान में नव समाज अनजाना सा होगा ,
तापहीन निस्तेज़ प्रेम बचकाना सा होगा ।
प्रेम मोहब्बत शब्दकोश में ही रह जायेंगे ,
अब न प्रेम के तड़के से कोइ दाल बघारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००००
(7)
ब्वायफ्रेंड तो होंगे लेकिन सहमें डरे हुये ,
"श्रंगार" नहीं, अब "शांत" और "करुणा"से भरे हुये ।
वैलेंटाइन डे अब होंगे अन्धे मूक बधिर ,
अब न ज्योतिषी जन्म कुंडली प्रेम विचारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००
(8)
युवती देखेगी ,घूरेगी ,छेड़ेगी निश दिन ,
युवक नज़र नीची रख कर छिड़ छिड़ जाये दिन दिन ।
युवती बन दूल्हा छेडे़गी युवक बना दूल्हन ,
अब सुहाग की रात युवक ही सेज बुहारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००००
(9)
नव विधान में वृद्ध नहीं अब आंखें सेंकेंगे ,
यूँ ही बैठे ढोर सदृश अब घर घर रेकेंगे ।
षोडषियां तो भूल जांयगे बुढ़ियों से भी डर डर,
बुडढा अपनी "बूढ़ जवानी" स्वयं सम्हारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००
(10)
बिन देखे, घूरे,बोले ,बिन पीछा किये हुये ,
बिना सैन के प्रेम नैन के प्याले पिये हुये।
प्रेमांकुर कैसे फूटेंगे , प्रेमी हिये जिये ?
प्रेम बीज अब खेत खेत में कौन बिखारेगा ?
रूपसि , रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००
(11)
पुलिस और नारी विमर्श से पुरुष रम्हायेगा,
स्वर्णिम पल कारागारों या कोर्ट बितायेगा ।
जीवन भर नारी से पीड़ित कुंठित लुटा पिटा,
नव विधान से क्षत विक्षत हो स्वर्ग सिधारेगा ।
रूपसि ,रूप तुम्हारा००००००००००००००००००००००००
(12)
नव विधान हे रूपसि ! तेरा , भस्मासुर होगा ,
जीवन में नव छन्द , ताल, लय और न सुर होगा ।
एक दिवस नारी वैरागी सी बन बिहरेगी ,
कोई पुरुष , नहीं नारी के निकट गुज़ारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००००००
-----------------------------------------------------------------------
176 अभय खंड प्रथम ,इंदिरापुरम ,ग़ाज़ियाबाद
rajkumarsachanhori@gmail.com
www.horionline.com
www.indiachanges.com
Mob.07599155999
टिप्पणी -- नारी शसक्तीकरण अधिनियम के लागू होने के पश्चात उससे पड़ने वाले प्रभावों पर वर्तमान और भविष्य के समाज का कटु , यथार्थ चित्रण करता हिन्दी का प्रथम गीत । इसके गायन ,प्रकाशन करने की स्वीकृति देता हूं । यह गीत भावी पीढिय़ों का झंडा गीत बनेगा ,ऐसा मेरा विश्वास है।
राज कुमार सचान "होरी"
दिनांक -25/03/2013
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सोमवार, 8 अप्रैल 2013
Fwd: पुरस्कार-योजनाएँ :(संजानार्थ/प्रकाशनार्थ प्रति)
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From: Jitendra Jauhar <jjauharpoet@gmail.com>
Date: 5 October 2011 9:30:31 PM GMT+05:30
To: editor@alertcitizens.org, editor@lekhni.net, editor@purnaviram.co.in, editorbahujan@gmail.com, ehindisahitya@gmail.com, ekaurtahelka@gmail.com, engineerbrijeshsingh <engineerbrijeshsingh@yahoo.in>, gaganswar@gmail.com, gafilswami@gmail.com, gayatripublication@yahoo.in, ghatak.27@gmail.com, girishbillore@gmail.com, Gorkhe Sailo <gorkhesailo@yahoo.com>, haftrozaseerat@rediffmail.com, Hari Shanker Rarhi <hsrarhi@gmail.com>, Hare Prakash Upadhyay <hpupadhyay@gmail.com>, Harihar Jha <hariharjha2007@gmail.com>, hindisahityamanch <hindisahityamanch@gmail.com>, hinditxco@gmail.com, hindusthankiaawaz@googlegroups.com, horionline <horionline@gmail.com>, horirajkumar@gmail.com, "imran.rak84" <imran.rak84@gmail.com>, india.lalit@gmail.com, indiopp@gmail.com, ish vani <eshvani@gmail.com>, ishden_praveen@rediffmail.com
Subject: पुरस्कार-योजनाएँ :(संजानार्थ/प्रकाशनार्थ प्रति)
आद. महोदय,--सादर अभिवादन!निमांकित विज्ञप्ति आपके संज्ञानार्थ / प्रकाशनार्थ प्रस्तुत है... फ़ाइल में भी अटैच्ड है।आशा है कि आप इसे इष्ट-मित्रों तक अग्रसारित करने का अनुरोध स्वीकारेंगे।कृपया प्राप्ति-सूचना अवश्य दे दीजिएगा...तथास्तु!सादर,जितेन्द्र 'जौहर'----------------------------------------------------------------------त्रैमा. 'अभिनव प्रयास' (अलीगढ़, उप्र) के-बहुचर्चित साहित्यिक स्तम्भ 'तीसरी आँख' की पुरस्कार/सम्मान-श्रृंखला:पुरस्कार क्रमांक-1: 'श्रीमती सरस्वती सिंह स्मृति: श्रेष्ठ सृजन सम्मान'(1100/-रुपये + प्रमाण-पत्र)वैदिक क्रांति परिषद की संस्थापिका एवं 'सरस्वती प्रकाशन' की प्रेरणास्रोत श्रीमती सरस्वती सिंह जी की पावन स्मृति में निर्धारित उक्त सम्मान साहित्य की किसी भी विधा (गद्य-पद्य) के रचनाकार को देय होगा जिसके लिए प्रविष्टियाँ निम्नांकित संलग्नकों के साथ 30 जून 2012 तक सादर आमंत्रित हैं:1. गद्य-पद्य विधा की तीन फुटकर रचनाएँ (प्रकाशित/अप्रकाशित का बंधन नहीं) मौलिकता प्रमाण-पत्र के साथ।2. सचित्र परिचय + डाक टिकटयुक्त एक लिफ़ाफ़ा व पता लिखे दो पोस्टकार्ड।विशेष: इस सम्मान हेतु श्रेष्ठ/स्तरीय प्रविष्टियों के अभाव की स्थिति में रचनाओं का चयन देशव्यापी पत्र-पत्रिकाओं, इंटरनेट, गद्य/पद्य संग्रहों, आदि में से किया जा सकता है।प्रायोजक: परामर्शदाता: चयनकर्ता:डॉ. आनन्दसुमन सिंह श्री अशोक 'अंजुम' जितेन्द्र 'जौहर'(प्र. संपादक 'सरस्वती सुमन) (संपादक 'अभिनव प्रयास') (स्तम्भकार: 'तीसरी आँख')देहरादून, उत्तराखण्ड. अलीगढ़, उ.प्र. सोनभद्र, उप्र.............................................................................................................पुरस्कार क्रमांक-2: 'श्री केशरीलाल आर्य स्मृति गीत/दोहा सम्मान'(5100/-रुपये + प्रमाण-पत्र)आर्य समाज-सेवक, स्वाभिमानी राष्ट्रभक्त एवं पूर्व स्वतंत्रता सेनानी श्री केशरीलाल आर्य जी की शैक्षिक जागरूकता का सहज अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि उन्होंने सन् 1930 में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। उनकी पावन स्मृति में स्थापित उपर्युक्त वार्षिक सम्मान वरिष्ठ गीतकार/दोहाकार डॉ. देवेन्द्र आर्य की पितृ-भक्ति का प्रतीक है। यह सम्मान राष्ट्रीय स्तर पर चुने गये किसी श्रेष्ठ कवि/कवयित्री (कोई आयु-बंधन नहीं) को गीत अथवा दोहा-सृजन के लिए देय होगा। इस सम्मान हेतु प्रविष्टियाँ निम्नांकित संलग्नकों के साथ 31 मार्च 2012 तक सादर आमंत्रित हैं:1. मौलिक गीत-संग्रह अथवा दोहा-संग्रह (प्रकाशन-वर्ष का कोई बंधन नहीं) की दो प्रतियाँ।2. सचित्र परिचय, प्रविष्टि-शुल्क रु. 200/- (मनीऑर्डर द्वारा; चेक अस्वीकार्य) + डाक टिकटयुक्त एक लिफ़ाफ़ा व पता लिखे दो पोस्टकार्ड।प्रायोजक: परामर्शदाता: चयनकर्ता:डॉ. देवेन्द्र आर्य डॉ. शिवओम अम्बर जितेन्द्र 'जौहर'(वरिष्ठ साहित्यकार) (वरिष्ठ साहित्यकार) (स्तम्भकार: 'तीसरी आँख')ग़ाज़ियाबाद, उप्र. फ़र्रुख़ाबाद, उ.प्र. सोनभद्र, उ.प्र..............................................................................................................पुरस्कार क्रमांक-3: 'श्रीमती रत्नादेवी स्मृति काव्य-सृजन सम्मान'(5001/- रुपये + प्रमाण-पत्र)डिप्टी कलेक्टर के रूप में तीन दशक का बेदाग़ सेवाकाल बिताने वाले 74 वर्षीय श्री आमोद तिवारीजी शांत स्वभाव एवं वैदुष्य के धनी हैं। उनकी गहन साहित्य-निष्ठा का प्रतीक उपर्युक्त वार्षिक सम्मान उनकी स्वर्गीया धर्मपत्नी श्रीमती रत्नादेवी जी की पावन स्मृति में स्थापित किया गया है जो कि राष्ट्रीय स्तर पर चयनित किसी श्रेष्ठ कवि/कवयित्री (युवाओं को विशेष वरीयता, तथापि आयु-बंधन नहीं) को देय होगा। इस सम्मान हेतु प्रविष्टियाँ निम्नांकित संलग्नकों के साथ 31 मार्च 2012 तक सादर आमंत्रित हैं:1. काव्य की किसी भी विधा (छांदस/अछांदस) के मौलिक प्रकाशित संग्रह (प्रकाशन-वर्ष का कोई बंधन नहीं) की दो प्रतियाँ अथवा मौलिकता प्रमाण-पत्र के साथ अप्रकाशित कृति (पाण्डुलिपि) अथवा न्यूनतम 15 फुटकर कविताएँ।2. सचित्र परिचय, प्रविष्टि-शुल्क रु. 200/- (मनीऑर्डर द्वारा; चेक अस्वीकार्य) + डाक टिकटयुक्त एक लिफ़ाफ़ा व पता लिखे दो पोस्टकार्ड।प्रायोजक: परामर्शदाता: चयनकर्ता:श्री आमोद तिवारी डॉ. रामसनेहीलाल शर्मा 'यायावर' जितेन्द्र 'जौहर'(पूर्व डिप्टी कलेक्टर) (वरिष्ठ साहित्यकार) (स्तम्भकार: 'तीसरी आँख')कटनी, म.प्र. फ़िरोज़ाबाद, उ.प्र. सोनभद्र, उ.प्र..............................................................................................................विशेष ध्यानार्थ:1.उपर्युक्त सभी सम्मान/पुरस्कार 'तीसरी आँख' द्वारा आयोजित एक भव्य 'सम्मान-समारोह' एवं गरिमापूर्ण 'अखिल भारतीय कवि-सम्मेलन' में प्रदान किये जायेंगे जिनका विस्तृत समाचार विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशनार्थ प्रेषित किया जायेगा। साथ ही, चयनित कवि/कवयित्री की चुनिन्दा रचनाओं को विभिन्न प्रतिष्ठित वेबसाइट्स/इंटरनेट पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित करने का प्रयास रहेगा।2.चयन-प्रक्रिया अत्यन्त पारदर्शी एवं त्रिस्तरीय होगी जिसे परिणामों के साथ घोषित किया जायेगा। कृतियों के निष्पक्ष चयन का आधार-कथन (संक्षिप्त समीक्षा के साथ) 'तीसरी आँख' में प्रकाशित करने का प्रयास रहेगा।3.प्रविष्टि-शुल्क का उद्देश्य व्यावसायिक नहीं है। इन सम्मानों/पुरस्कारों का मूल उद्देश्य श्रेष्ठ साहित्य-सृजन को प्रेरित करना है।
4.प्रशंसकों/शुभचिंतकों द्वारा भेजी गयी अपने प्रिय कवि/कवयित्री की प्रविष्टियाँ (वांछित संलग्नकों के साथ) स्वीकार्य हैं।5.किसी पाण्डुलिपि के चुने जाने की स्थिति में निर्धारित सम्मान/पुरस्कार उसके प्रकाशनोपरान्त ही प्रदान किया जायेगा।6.सभी सम्मानों के लिए अलग-अलग प्रविष्टियों की छूट उपलब्ध है; लिफ़ाफ़े पर सम्मान/पुरस्कार का नाम एवं क्रमांक स्पष्ट रूप से लिखें। संलग्नकों के अभाव में प्रविष्टि अमान्य होगी।7.प्रायोजकों अथवा परामर्शदाताओं से चयन-प्रक्रिया अथवा निर्णायक-मण्डल आदि से संबंधित अनपेक्षित जानकारी माँगना अयोग्यता माना जायेगा। किसी भी समय नियम-परिवर्तन एवं अंतिम निर्णय-संबधी सर्वाधिकार उपर्युक्त नामांकित मण्डल के पास सुरक्षित हैं। निर्णय-संबधी कोई भी विवाद कदापि स्वीकार्य नहीं होगा।8.वांछित संलग्नकों के साथ समस्त प्रविष्टियाँ 'तीसरी आँख' के निम्नांकित पते पर निर्धारित तिथि से पूर्व भेजें:जितेन्द्र 'जौहर'(स्तम्भकार 'तीसरी आँख')आई आर-13/6, रेणुसागर-231218,सोनभद्र (उप्र). मोबा. 09450320472ईमेल: jjauharpoet@gmail.com------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------जितेन्द्र 'जौहर'Jitendra Jauharस्तम्भकार: 'तीसरी आँख'(त्रैमा. 'अभिनव प्रयास', अलीगढ़, उप्र)(संपा. सलाहकार: त्रैमा. 'प्रेरणा', शाहजहाँपुर, उप्र)सम्पर्क: आई आर-13/6, रेणुसागर, सोनभद्र (उप्र) 231218.मोबा: +91 9450320472ईमेल: jjauharpoet@gmail.comवेब पता: http://jitendrajauhar.blogspot.com/.................................................................................................................
सोमवार, 1 अप्रैल 2013
गीत -"रूपसि ,रूप तुम्हारा००००००"
गीत -"रूपसि ,रूप तुम्हारा००००००"
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
------ राज कुमार सचान "होरी"
-----------------------------------------------------------------------------
रूपसि, रूप तुम्हारा कोई नहीं निहारेगा ।
पीछे से कोई , हौले से नहीं पुकारेगा ।।
(1)
नव विधान के व्यूहपाश में , यौवन बिलखेगा ,
नारी का सौन्दर्य प्रशंसा के हित तरसेगा ।
कारागारों के कल्पित भय से भयभीत हुआ ,
चातक कोई कभी चाँद को नहीं निहारेगा ।
पीछे से कोई हौले से ०००००००००
--------------------------------------------------------------------------------
(2)
अब मजनू के लिये सदा ही लैला तरसेगी ,
बिना मेघ केबिजली भी अब किस पर तड़पेगी ?
पपिहा पिउ पिउ बोलेगा भी कैसे नये विधान में,
कोई फ़रहाद कभी सीरी को नहीं पुकारेगा ।
रूपसि, रूप तुम्हारा००००००००००००००
(3)
नैनों सैनों से न प्रेम संदेश लिखेंगे हम ,
प्यार मोहब्बत की दुनियाँ में कहाँ दिखेंगे हम ।
आदम -हौव्वा , मनु-सतरूपा डरे डरे होंगे ,
गीतकार कम्पायमान श्रंगार बिसारेगा ।
रूपसि, रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००
(4)
अलंकार श्रंगार और रस रोयेंगे घर घर ,
अब बसंत पतझड़ सा होगा झर झर ग्राम नगर ।
सूरदास पुरुषों के आगे मन मारे सौन्दर्य ,
बुझा-बुझा सा प्यासा -प्यासा केश सवांरेगा ।
रूपसि, रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००
(5)
व्यर्थ -व्यर्थ श्रंगार प्रसाधन ,सजना और संवरना ,
अलंकार नख शिख कपोल कटि भृकुटी और सिहरना ।
रूप निरर्थक , नहीं अगर , दीदार करे कोई ,
कामदेव के बिना तुम्हें रति ! कौन निखारेगा ?
रूपसि ,रूप तुम्हारा०००००००००००००००००००००
(6)
नव विधान में नव समाज अनजाना सा होगा ,
तापहीन निस्तेज़ प्रेम बचकाना सा होगा ।
प्रेम मोहब्बत शब्दकोश में ही रह जायेंगे ,
अब न प्रेम के तड़के से कोइ दाल बघारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००००
(7)
ब्वायफ्रेंड तो होंगे लेकिन सहमें डरे हुये ,
"श्रंगार" नहीं, अब "शांत" और "करुणा"से भरे हुये ।
वैलेंटाइन डे अब होंगे अन्धे मूक बधिर ,
अब न ज्योतिषी जन्म कुंडली प्रेम विचारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००
(8)
युवती देखेगी ,घूरेगी ,छेड़ेगी निश दिन ,
युवक नज़र नीची रख कर छिड़ छिड़ जाये दिन दिन ।
युवती बन दूल्हा छेडे़गी युवक बना दूल्हन ,
अब सुहाग की रात युवक ही सेज बुहारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००००
(9)
नव विधान में वृद्ध नहीं अब आंखें सेंकेंगे ,
यूँ ही बैठे ढोर सदृश अब घर घर रेकेंगे ।
षोडषियां तो भूल जांयगे बुढ़ियों से भी डर डर,
बुडढा अपनी "बूढ़ जवानी" स्वयं सम्हारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००
(10)
बिन देखे, घूरे,बोले ,बिन पीछा किये हुये ,
बिना सैन के प्रेम नैन के प्याले पिये हुये।
प्रेमांकुर कैसे फूटेंगे , प्रेमी हिये जिये ?
प्रेम बीज अब खेत खेत में कौन बिखारेगा ?
रूपसि , रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००
(11)
पुलिस और नारी विमर्श से पुरुष रम्हायेगा,
स्वर्णिम पल कारागारों या कोर्ट बितायेगा ।
जीवन भर नारी से पीड़ित कुंठित लुटा पिटा,
नव विधान से क्षत विक्षत हो स्वर्ग सिधारेगा ।
रूपसि ,रूप तुम्हारा००००००००००००००००००००००००
(12)
नव विधान हे रूपसि ! तेरा , भस्मासुर होगा ,
जीवन में नव छन्द , ताल, लय और न सुर होगा ।
एक दिवस नारी वैरागी सी बन बिहरेगी ,
कोई पुरुष , नहीं नारी के निकट गुज़ारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००००००
-----------------------------------------------------------------------
176 अभय खंड प्रथम ,इंदिरापुरम ,ग़ाज़ियाबाद
rajkumarsachanhori@gmail.com
www.horionline.com
www.indiachanges.com
Mob.07599155999
टिप्पणी -- नारी शसक्तीकरण अधिनियम के लागू होने के पश्चात उससे पड़ने वाले प्रभावों पर वर्तमान और भविष्य के समाज का कटु , यथार्थ चित्रण करता हिन्दी का प्रथम गीत । इसके गायन ,प्रकाशन करने की स्वीकृति देता हूं । यह गीत भावी पीढिय़ों का झंडा गीत बनेगा ,ऐसा मेरा विश्वास है।
राज कुमार सचान "होरी"
दिनांक -25/03/2013
Sent from my iPad
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
------ राज कुमार सचान "होरी"
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रूपसि, रूप तुम्हारा कोई नहीं निहारेगा ।
पीछे से कोई , हौले से नहीं पुकारेगा ।।
(1)
नव विधान के व्यूहपाश में , यौवन बिलखेगा ,
नारी का सौन्दर्य प्रशंसा के हित तरसेगा ।
कारागारों के कल्पित भय से भयभीत हुआ ,
चातक कोई कभी चाँद को नहीं निहारेगा ।
पीछे से कोई हौले से ०००००००००
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(2)
अब मजनू के लिये सदा ही लैला तरसेगी ,
बिना मेघ केबिजली भी अब किस पर तड़पेगी ?
पपिहा पिउ पिउ बोलेगा भी कैसे नये विधान में,
कोई फ़रहाद कभी सीरी को नहीं पुकारेगा ।
रूपसि, रूप तुम्हारा००००००००००००००
(3)
नैनों सैनों से न प्रेम संदेश लिखेंगे हम ,
प्यार मोहब्बत की दुनियाँ में कहाँ दिखेंगे हम ।
आदम -हौव्वा , मनु-सतरूपा डरे डरे होंगे ,
गीतकार कम्पायमान श्रंगार बिसारेगा ।
रूपसि, रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००
(4)
अलंकार श्रंगार और रस रोयेंगे घर घर ,
अब बसंत पतझड़ सा होगा झर झर ग्राम नगर ।
सूरदास पुरुषों के आगे मन मारे सौन्दर्य ,
बुझा-बुझा सा प्यासा -प्यासा केश सवांरेगा ।
रूपसि, रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००
(5)
व्यर्थ -व्यर्थ श्रंगार प्रसाधन ,सजना और संवरना ,
अलंकार नख शिख कपोल कटि भृकुटी और सिहरना ।
रूप निरर्थक , नहीं अगर , दीदार करे कोई ,
कामदेव के बिना तुम्हें रति ! कौन निखारेगा ?
रूपसि ,रूप तुम्हारा०००००००००००००००००००००
(6)
नव विधान में नव समाज अनजाना सा होगा ,
तापहीन निस्तेज़ प्रेम बचकाना सा होगा ।
प्रेम मोहब्बत शब्दकोश में ही रह जायेंगे ,
अब न प्रेम के तड़के से कोइ दाल बघारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००००
(7)
ब्वायफ्रेंड तो होंगे लेकिन सहमें डरे हुये ,
"श्रंगार" नहीं, अब "शांत" और "करुणा"से भरे हुये ।
वैलेंटाइन डे अब होंगे अन्धे मूक बधिर ,
अब न ज्योतिषी जन्म कुंडली प्रेम विचारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००
(8)
युवती देखेगी ,घूरेगी ,छेड़ेगी निश दिन ,
युवक नज़र नीची रख कर छिड़ छिड़ जाये दिन दिन ।
युवती बन दूल्हा छेडे़गी युवक बना दूल्हन ,
अब सुहाग की रात युवक ही सेज बुहारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००००
(9)
नव विधान में वृद्ध नहीं अब आंखें सेंकेंगे ,
यूँ ही बैठे ढोर सदृश अब घर घर रेकेंगे ।
षोडषियां तो भूल जांयगे बुढ़ियों से भी डर डर,
बुडढा अपनी "बूढ़ जवानी" स्वयं सम्हारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ०००००००००००००००००००
(10)
बिन देखे, घूरे,बोले ,बिन पीछा किये हुये ,
बिना सैन के प्रेम नैन के प्याले पिये हुये।
प्रेमांकुर कैसे फूटेंगे , प्रेमी हिये जिये ?
प्रेम बीज अब खेत खेत में कौन बिखारेगा ?
रूपसि , रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००
(11)
पुलिस और नारी विमर्श से पुरुष रम्हायेगा,
स्वर्णिम पल कारागारों या कोर्ट बितायेगा ।
जीवन भर नारी से पीड़ित कुंठित लुटा पिटा,
नव विधान से क्षत विक्षत हो स्वर्ग सिधारेगा ।
रूपसि ,रूप तुम्हारा००००००००००००००००००००००००
(12)
नव विधान हे रूपसि ! तेरा , भस्मासुर होगा ,
जीवन में नव छन्द , ताल, लय और न सुर होगा ।
एक दिवस नारी वैरागी सी बन बिहरेगी ,
कोई पुरुष , नहीं नारी के निकट गुज़ारेगा ।
रूपसि , रूप तुम्हारा ००००००००००००००००००००००
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टिप्पणी -- नारी शसक्तीकरण अधिनियम के लागू होने के पश्चात उससे पड़ने वाले प्रभावों पर वर्तमान और भविष्य के समाज का कटु , यथार्थ चित्रण करता हिन्दी का प्रथम गीत । इसके गायन ,प्रकाशन करने की स्वीकृति देता हूं । यह गीत भावी पीढिय़ों का झंडा गीत बनेगा ,ऐसा मेरा विश्वास है।
राज कुमार सचान "होरी"
दिनांक -25/03/2013
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